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SHRUTSAGAR
March-2019 संपादकीय
रामप्रकाश झा श्रुतसागर का यह नवीनतम अंक आपके करकमलों में समर्पित करते हुए हमें असीम आनन्द की अनुभूति हो रही है।
प्रस्तुत अंक में गुरुवाणी शीर्षक के अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के द्वारा लिखित समसामयिक लेख प्रस्तुत किया जा रहा है। इस लेख के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि रजोगुण और तमोगुण से प्रेरित जीव सत्त्वगुण से प्रेरित जीव का दमन कर अन्त में स्वयं युद्धादि के द्वारा नष्ट हो जाते हैं और यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है, जिसके अन्तर्गत जीवनोपयोगी प्रसंगों का विवेचन किया गया है।
अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम ज्ञानमन्दिर के पंडित श्री भरत टी. जोषी के द्वारा सम्पादित कृति “ऋषभजिन स्तुतिलहरी” प्रकाशित की जा रही है। उपाध्याय श्री स्वरूपचन्दजी ने इस कृति में भरत चक्रवर्ती के द्वारा की गई यात्राओं का वर्णन तथा तीर्थों के उद्धार की चर्चा करते हुए स्तुतिलहरी की फलश्रुति तथा भक्ति की महिमा का वर्णन किया गया है। द्वितीय कृति के रूप में पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित कृति “हीरानंदसूरि यशवेली" प्रकाशित की जा रही है। कवि शुभंकर ने इस कृति के माध्यम से श्री हीरानंदसूरि के साथ-साथ उनकी परम्परा में हुए यशोदेवसूरि, अभयदेवसूरि आदि अन्य आचार्य भगवन्तों का संक्षिप्त परिचय तथा अनेक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाक्रम प्रस्तुत किया है। तृतीय कृति के रूप में पंडित श्री राहुल आर. त्रिवेदी के द्वारा सम्पादित कृति “सम्मेतगिरितीर्थ स्तवन" प्रकाशित की जा रही है। उपाध्याय श्री मेघविजयजी ने कुल १४ गाथाओं की इस लघु कृति में सम्मेतशिखरतीर्थ में केवलज्ञान एवं निर्वाण को प्राप्त हुए तीर्थंकर भगवंतों की वंदना तथा तीर्थ का प्राकृतिक वर्णन किया है।
पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक-८१,अंक-३ में प्रकाशित “गुजराती बोलीमां वित्त अने संवृत ए-ओ” नामक लेख प्रकाशित किया जा रहा है। इस लेख में सत्रहवीं सदी तथा उसके पूर्व की गुजराती बोलियों में हए परिवर्तनों तथा प्राकृति-अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी तथा मारवाड़ी भाषाओं से साम्यता - वैषम्य आदि का वर्णन किया गया है। ___पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत डॉ. सीमा रोभिया के द्वारा रचित “कवि मोहनविजयजी लटकाला” पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है, जिसमें कवि लटकाला के द्वारा रचित साहित्यों की विशिष्टता के ऊपर प्रकाश डाला गया है।
हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे।
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