Book Title: Shrutsagar 2019 03 Volume 05 Issue 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 28 ठाण ठाम परणाम करीजइं, सकल संघ लेई साथइं रे । निश्चय भव्य परम पद पामइं, इम बोल्युं वीरनाथइं रे अचल एह अति ऊंचउ दीसै, सुरगिरि वादो वादहं रे । अविचल राज रमणि ते परणइं, जाणउ जैन प्रसादै रे केवलग्यान लही मुनि मोटा, सिद्ध थया जिन साथई रे । पूजी प्रणमी ध्यांन धरीजइं, अष्टसिद्धि तस हाथइं रे मानव मुगति रमणी वीवाहइं, ए गिरि वेदी बनाइ रे । जिनवर वीस करो तिहां साखी, तस चरणे चित लाई रे श्रीवनवाडी आराम मनोहर, बहु फल फूलइं झूलई रे । साख चलावी जननइ तेडइं, ए अवसर मत भूलइ रे जनम कृतारथ सारथ शिवनउ, परमारथ सवि पामइं रे । ए तीरथ भेट्यां सुख संपद, लबद्धि घणी इण ठामें रे नवपल्लवतरु अरनइं रागई, मानुं वात वतावै रे । राग धरइं जे तीरथ सेती, ते उंचा फल पावइ रे वीस विसा तस महिमा वाधई, वीस भेद श्रुत साधई रे । वीसेंदु के जिन आराध, छूटइं ते अपराधई रे जिनवर मुरति पूरति वंछित, भविजन मोहन दीसइं रे । पगलां सघलां शिव सुख आपइं, थाप्या जे जगदीसइं रे संघ समे समेत महाचल, जे जीन वीसइं वंदई रे । मेघविजय उवझाय भणइं इम, नर ते सुख चिर नंदई रे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only मार्च-२०१९ श्री०..........।।५।। श्री०............॥६॥ श्री०............॥७॥ श्री०..........।।८।। to....11811 श्री०.........॥१०॥ श्री०.........॥११॥ श्री०..........।।१२।। श्री०..........॥१३॥ श्री०............॥१४॥ इति श्रीसमेतगिरितीर्थ स्तवनं समाप्ता ।। गणि भक्तिविजय पठनार्थं ॥ संवत १७६९ वर्षे लिखतं कृष्णगढ मध्ये फागुण सुदि ३ दिन लिखतं ।। ।। श्री ।।

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