Book Title: Shrutsagar 2019 03 Volume 05 Issue 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 26 उपाध्याय मेघविजयजी कृत सम्मेतगिरितीर्थ स्तवन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राहुल आर. त्रिवेदी गुजराती में कहावत है कि 'तारे ते तीर्थ' अनादि काल से पापाचरण में लिप्त, दिन-रात सांसारिक प्रपंचों में घिरे हुए इस जीव को जीवन की सही दिशा देने व श्रेष्ठ कर्त्तव्य के लिए जाग्रत रखने वाले अनेक तीर्थ हैं । मार्च-२०१९ जहाँ जिनेश्वरों के कल्याणक हूए हों ऐसी भूमि तीर्थ के रूप में पूजी जाती है । ऐसा ही एक शाश्वत तीर्थ है श्रीसम्मेतशिखरजी । जहाँ वर्तमान चौबीसी के २० तीर्थंकर भगवान मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। इस तीर्थ के विषय में अद्यपर्यन्त संस्कृत प्राकृत व देशी भाषा में गद्य व पद्यात्मक बहुत सारी कृतियाँ प्राप्त होती हैं, उनमें से प्रायः अप्रकाशित एक कृति मुनि श्री मेघविजयजी के द्वारा रचित सम्मेतगिरितीर्थ स्तवन प्रकाशित की जा रही है। मुनि श्री मेघविजयजी जब संघ लेकर सम्मेतशिखरजी गए हों, उस समय इस कृति की रचना हुई हो, ऐसा संभव है। इस तीर्थ के बारे में प्रस्तुत कृति में कहा गया है कि- “इम अनंत चउवीसी जिनवर सीधा केवलि देखई रे ।” इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया है कि इसकी यात्रा करने से अविचल राजरमणी एवं अष्टसिद्धि की प्राप्ति होती है। कृति परिचय जनम कृतारथ सारथ शिवनउ परमारथ सवि पामई रे । ए तीरथ भेट्यां सुख संपद लबधि घणी इण ठामें रे ॥ 1 कृति की भाषा मारुगुर्जर है । पद्यबद्ध इस कृति में १४ गाथाएँ हैं । कर्त्ता ने प्रथम गाथा में वर्तमान चौवीसी में निर्वाण प्राप्त हुए बीस तीर्थंकरों को स्मरण कर सम्मेतरशिखर को नमस्कार किया है। उसके बाद बीस तीर्थंकरो का नामोल्लेख कर वंदना की है। गिरिराज के प्राकृतिक वर्णन के साथ किया गया यह महिमा गान साहजिकरूप से भक्तों को प्रभावित करता है । कर्त्ता ने तीर्थ की महिमा वर्णन करते हुए दसवीं गाथा में कहा है कि For Private and Personal Use Only कृति के रचना वर्ष का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है, किन्तु लेखन वर्ष वि.सं.१७६९ प्राप्त होने से कृति की रचना उससे पूर्व होना स्वाभाविक है।

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