Book Title: Shrutsagar 2019 03 Volume 05 Issue 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 19 March-2019 ॥१ ॥ ॥२॥ ॥ ४ ॥ श्रीहीराणंदसूरि यशवेलि अहँ नमः । ऐं नमः॥ GO॥ राग-आसाऊरी ॥ जत्ति ताल ॥ भट्टारक श्री १०८ हीराणंद सूतो यशभो. सुभंकर कृत वेलि लिक्षते ॥ ब्रह्माणी वरदाइनी, परम मनोरथ पूरि। वेल सुजस करि वर्णवां, श्रीहीराणंदसूरि उमयां तन' सांनिधि अधिक, जपि चोवीस जिणंद। गोतम सह गणधर सुगुरु, सुर वै नमै सुरिंद तुम्ह पसायै मूझ मति, सुललित वाणी सार । गुरु गिरूआ गुण गाईयै, चंद्रगछि सुविचार ॥३॥ यसोदेवसूरि जोवतां, जपि तपि वडा जतीस। जस ज्यैरो' जंपे जगत्र, वसुधा विसवावीस नयणसेण कुंअर नरिंद, वंस राठोड विख्यात । मृगी एक आखेट मधि, थाये गरभवति घात दोष तिकइं हुं करि दया, मनि आंणी महिरांण। कोई पंडित जोसी पूछीया, पुहचरण-परियांण ॥६॥ महि जोगी कोई ब्राह्मण, पभणै आल पंपाल। नयणसेन मांने नही, वचन तिके विरसाल पूंनाकर काउसगि प्रगट, सगुरु यसोदेवसूरि । नयणसेन आयो निरखि, पुण तप तणे पडूरि त्रिण प्रदक्षण आपि तिणि, परिसूं कीयो प्रमाण। मृगीदोष लागो मुनै, स(मु?)झि उतारो सांमि ॥९॥ यशोदेवसूरिंद जपि, पुनःचरण ए पोष। अधिपति कुंअर उतरे, दीख्या लीयै (अ?)दोष ॥१०॥ १. गणेश २. जेमनो ३. शिकार ४. पुरश्वचरण (वैदिक विधान) ५. निरस ६. प्रचूरताथी ७. विधि पूर्वक ८. स्वीकार ९.? ॥५॥ ॥ ७ ॥ ॥८॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36