Book Title: Shrutsagar 2018 09 Volume 05 Issue 04 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 7 होमाय नहि ज्यां दुःखडां ते वेदवाणी नहि ठरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. जे शब्द घोषक वेदीया पूरूं न खावानुं लहे, ते शब्द रूपी वेदनी मोटाई ना दुनिया कहे; अन्तर् प्रभुता जागती तेथी ज वाणी नीकळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. वेदो अनादि कालथी तीर्थंकरोनी वाणीए, सहु जातनी शिक्षाभर्या आचारथी मन आणीए; प्रामाण्य सर्वोत्कृष्ट छे निरवद्य वाणी जय करी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. स्वतंत्र सारां हृदय छे वेदो खरा मन आणीए, दुःखो टळे परतंत्रता ते वेद साचा जाणीए; विश्वोन्नति शान्ति विषे शुभ वेद ज्योति झळहळी, वी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. जे जे मरेला वेद तेतेमारता जगजीवने, समजण पडे नहि मूर्खने तेमज वळी महाकलि बने; ज्ञानोदधि मृतवेदने बाहिर् काढे (छांळथी) उछळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. आ विश्वमांहि वेदना पर्याय शब्दो जे लह्या, भाषा गमे ते जातनी पण ज्ञानने कहेता रह्या; सम्यग् थता ज्यां निर्णयो जाता न लोको आथडी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. मानव गमे ते जातना अध्यात्मज्ञानी जे अहो, ते ते मनोहर वेद छे सापेक्षदृष्टया मन लहो; पूर्वे अहो जे भासतुं ते हाल भासे छे वळी, एव अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सितम्बर-२०१८ 54 55 56 57 58 59 60 (क्रमशः)Page Navigation
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