Book Title: Shrutsagar 2018 09 Volume 05 Issue 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR Septermber-2018 संपादकीय रामप्रकाश झा __ श्रुतसागर का यह नूतन अंक आपके करकमलों में समर्पित करते हए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है। प्रस्तुत अंक में गुरुवाणी शीर्षक के अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. की कृति “आध्यात्मिक पदो” की गाथा ४८ से ५३ तक प्रकाशित की जा रही हैं। इस कृति के माध्यम से आध्यात्मिक उपदेश देते हए अहिंसा, सत्यपालन, आहारादि से संबंधित साधारण जीवों को प्रतिबोध कराने का प्रयत्न किया गया है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है, जिसके अन्तर्गत जीवनोपयोगी प्रसंगों का विवेचन किया गया है। अप्रकाशित कृति के अंतर्गत इस अंक में सर्वप्रथम आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर की कार्यकर्ली डॉ. जागृतिबेन प्रजापति के द्वारा सम्पादित लेख “चोबीसजिन सवैया" प्रकाशित किया जा रहा है। कुल अट्ठाईस गाथा की इस कृति में चौबीस तीर्थंकरों के माता-पिता, लांछन, सौंदर्य आदि का वर्णन करते हुए उनकी स्तवना की गई है। द्वितीय कृति के रूप में पर्वाधिराज पर्युषण के शुभावसर पर ज्ञानमन्दिर के पण्डित श्री राहुल आर. त्रिवेदी के द्वारा सम्पादित “पर्युषणपर्व स्तुति” नामक एक लघु कृति का प्रकाशन किया जा रहा है, जो अद्यपर्यन्त लगभग अप्रकाशित है। इस कृति में पर्युषण पर्व में की जानेवाली आराधनाओं का संक्षिप्त में वर्णन किया गया है। तृतीय कृति के रूप में आर्य मेहुलप्रभसागरजी म.सा. के द्वारा सम्पादित “गौतमपृच्छा संधि” प्रकाशित की जा रही है। प्रस्तुत कृति गुरु गौतमस्वामी की जिज्ञासा और प्रभु महावीरस्वामी के समाधान पर आधारित है। विभिन्न प्रकार की ४८ शंकाओं का परमात्मा महावीर प्रभु से प्राप्त समाधानों को काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में “बीकानेर की उस्ता चित्रशैली” नामक लेख का प्रकाशन किया जा रहा है। यह लेख यद्यपि प्रबुद्ध जीवन के अगस्त अंक में प्रकाशित हो चुका है। परन्तु लेख की विषयवस्तु तथा प. पू. गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. की भावना का आदर करते हुए श्रुतसागर के प्रस्तुत अंक में इसका पुनः प्रकाशन किया जा रहा है। हम आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे, जिससे आगामी अंक को और भी परिष्कृत किया जा सके। For Private and Personal Use Only

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