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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१८ वि. १८१४ मळे छे. जेना आधारे कर्ता- वर्ष १८मी सदी उत्तरार्ध थी १९मी सदी पूर्वार्धमां थयो होय तेम कही शकाय. कर्तानी अन्य कोई कृति होय तेवू जाणवा मळ्यु नथी. प्रतपरिचय :
प्रस्तुत कृतिथी संबंधित चार प्रतो आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबामां उपलब्ध छे. तेमां बे प्रतो संपूर्ण ने बे प्रतो अपूर्ण छे.
(A)प्रतनं. ४३७८० ने आधार प्रति मानीने आ कृतिनुं संपादन करवामां आव्यु छे. आ प्रतनां प्रतिलेखक खंतिविजयनो समय सं.१८९८ मळे छ। प्रतमां कुल ५ पत्रो छे। प्रत्येक पत्रमा १३ पंक्तिओ अने प्रत्येक पंक्तिमा ४४ थी ४६ अक्षरो छे। प्रतिलेखन कार्य संदर, स्वच्छ अने मोटा अक्षरमां करेल छ । प्रतमां गेरू लाल रंगथी अंकित विशिष्ट पाठ छ। अने अंक स्थानमा सादा रेखा चित्र दोरवामां आवेल छ । आवश्यकतानुसार आ प्रतना पाठांतर माटे १९वीं सदी की (B)प्रत नं.८७८५४नो उपयोग कर्यो छे।
___चोवीस तीर्थंकर रास सवैइया लिख्यते ॥ दूहा ॥ सेवी' माता सरसती, वचन विलास विनोद ।। सुगुरु चरण चित लायके, परम हुइ प्रमोद गुणनिधी' गौत्तम स्वामको, एह धुरी अभिधांन । सकल इष्ट दायक सदा, विधसुं ताहि वखांण"
॥२॥ तवै चौवीसे जिनतणो', हाव भाव सुविलास । रचुं सवैइया अधिक रस, सैमुख बुधिप्रकास
॥३।। सवैया २३॥ प्रथमेश जिनेस' तुहारीय सेव करें मिली देव युगादि जिणं, मरुदेवीय मात वनिता नाथ मुगति को साथसु एम भणं । सुवर्णह' वांन नाभीसुत जांन वृषभह लंच्छन तस तणं,12 अतिसयवंत वडे भगवंत नमै हरी तंत' सुख घणं
॥१॥
॥१॥
1. B सरस 2. A सगुरु 3. B पावत परम परमोद 4. B गुणवंत 5. B धूरे 6. B लब्धवंत तृभुवनतिलो निरुपम ताह वखांन 7. A चउवीसै जिनवर चवै 8. B अपनि 9.A जेनेस 10. B जाता वनिता 11. B सुवन 12. B लंछन तास तणं 13. B संतसु
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