Book Title: Shrutsagar 2018 09 Volume 05 Issue 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥१॥
SHRUTSAGAR
Septermber-2018 अज्ञानभावान्मतिविभ्रमाद्वा, यदर्थहीनं लिखितं मयात्र॥ तत्सर्वमार्यैः परिशोधनीयं, कोपं न कुर्यात्खलु लेखकस्य ॥१॥ हस्तप्रति की प्रतिलिपि उपलब्ध करवाने हेतु आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर कोबा के संचालक गण और अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर के संचालक श्री विजयचंदजी नाहटा एवं श्री रिषभजी नाहटा को साधुवाद।
वाचकवर्य श्री नयरंग विरचित गौतम पृच्छासंधि
ढाल १(सिंधिनी) वीर जिणंद तणा पय वंदि, त्रिकरण शुद्धि करी आणंद । धर्म अधर्म तणउ फल जाणि, श्री गौतम पूछइ सुप्रमाण किणि करमइ जीव नरकइ जाइ', तेहिज जीव अमर किम थाई। तिरिय तणी गति किणपरि लहइ, माणसपणउ किसइ संग्रहइ' ॥२॥ नर नई नारि नपुंसक तेम, अलप दीरघ आऊखउ केम। भोगरहित किम भोगी होइ', सुभग दुभग किणपरि जीव सोइ किम मेधावी किम दुरमती, पंडित नइ मूरिख” किण गती। किणपरि धीर' वहइ किम भीर, 19, विद्या निफल सफल किम वीर मिलइ लिषमी नासइ घर आइ, किम ते वाधइ निश्चल थाइ। किसइ करम सुत जीवइ नहीं, बहु बेटा किम बधिरउ सही किम जाचंध” जिम्यउ नवि जरइ8, कोढ़ी किम कूबड अणुसरइ। दासपणउ जीव पामइ किसई', निरधन सधन हुवइ किणि वसइ रोगी रोगरहित किम सदा, हीण अंग मूक, 37 एकदा। किसइ करम टूटउ8 पंगुपणउ”, केम सरूप कुरूपी' भणउ किम जीव वेयण सहइ असात', वेयण रहित किसइ विख्यात । किसइ करम पंचेंद्री जोइ", एकेंद्री किण करि७,45 ते होइ निश्चल किणकरि हवइ संसार, तसु संषेपइ किसइ47 विचार । किण करमइ भवजल निधि तरी, जीव लहइ सासय सिवपुरी १. माणुसपणउ, २. किणिकरि, ३. किणि, ४. किणिपरि भीर हवइ किम धीर, ५. होइ किम (अभयप्रतौ), ६. मूंक, ७. किणिपरि, ८. कहउ, ९. सुविचार,
॥३॥
||४||
॥५॥
॥६॥
॥७॥
॥८॥
॥९॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36