Book Title: Shrutsagar 2018 09 Volume 05 Issue 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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॥२३॥
॥२४॥
॥२५॥
SHRUTSAGAR
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Septermber-2018 आपणपइ नवि देय, वारइ पर भणी, दीधइ पछतावउ करइ ए। एहवउ जे करम करेइ, भोगरहित गिणि, ते जीव भवमांहि संचरइ ए ॥२१॥ सयणासण आहार, प्रासुक पाणीय, साधु भणी भावइ दीयइ ए। ते नर भोग उदार, पामइ गोयम, एह अरथ आणइ हीयइ ए
॥२२॥ देव सुगुरु अणगार, विणय परायण, संत दंत मूरति हवइ ए। मधुरउ मुखि सुविचार, ते नर उत्तम, सोभागी हुइ परभवइ ए निरगुण करइ२ अहंकार, तपसीनंदक, सासण करइ विडंबणा ए। जे जीव रागी अपार२२, कालइ ते नर, पामई दुख दोहग घणा ए भणइ गुणइ२३ सविसेस, अरथ धरइ मनि, भगति करइ गुरुजन तणी ए। सूधउ द्यइ उपदेस, जाण भवंतरि, बुद्धि वाधइ तेहनी घणी ए नाणवंत गुणपुन्न, साधु चरणधर, तेहनी जे हीला करइ ए। ते जीव मरिय अधन्न, मेधावरजित, घोर संसारइ संचरइ ए
॥२६॥ सेवा सारइ जेह, गिरुया" गुरु तणी, पुण्य पाप जाणइ सहू ए। देव गुरु श्रुत ससनेह, ते नर पंडित हुइ२६, परभव सुख लहइ बहू ए ॥२७॥ खाजइ पीजइ सार, मारि न पातक, धरम किसउ हुस्यइ भलउ ए। भणियइ कुण उपगार, इम जे चीतवइ, ते मरिनइ हुइ काहलउ ए कूकड़ तीतर लाव, सस मृग सूयर, धारी वध बंधन करइ ए। ते जीव दुट्ठ सहाव, भीरु भवंतरी, सयल काल दुखियउ फिरइ ए सर्व जीवनइ त्रास, न करइ जे नर, तेम करावइ पणि नही ए। परनइ पीड पणास, करइ निरंतर, ते जगि धीर हुवइ सही ए
ढाल३ (राग देशावरी, तुंगीया गिरि शिखर सोहै एहनी) विनय कुडउ करीय वंचइ, नाण अनइ विन्नाण२ रे । गुरु भणी अवगणइ जे नर, विद्या तसु५ अप्रमाण रे
॥३१॥
॥२८॥
॥ २९॥
॥३०॥
२७. 'जे' अभयप्रतौ नास्ति, २८. गुरु श्रुत (अभयप्रतौ), २९. हुवइ, ३०. करिय, ३१. तपसीनिंदक, ३२. राग उदार (अभयप्रतौ), ३३. सुणइ (अभयप्रतौ), ३४. वधइ (अभयप्रतौ), ३५. गुरुजण, ३६. 'हुइ’ कोबा प्रतौ नास्ति, ३७. परभवि लहइ सुख, ३८. हवइ, ३९. तपगार, ४०. विकरइ, ४१.वंछइ, ४२. विनाण, ४३. अवगिणइ, ४४. विज्जां, ४५. तासुं,
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