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Septermber-2018 समृद्ध जैन श्रावकोए जिनालयो ने शणगार्या बाद पोताना घरोने, हवेलीओने पण आ ज चित्रशैली द्वार भव्यता आपी. जेमांनी रामपुरियों की हवेली, ढड्डों की हवेलीमांनी केटलीक कलाकृतिओ आजे पण त्यां मोजूद छे. आम आ उस्ता कळानुं परिवहन करवामां जैनोनुं विशेष प्रदान रह्यं छे. जो के फक्त उस्ता कळा ज नहीं परंतु शिल्पकळा, चित्रकळा, काष्ठकळा, लेखनकळादि अन्य कळाओने विकसाववामां पण जैन श्रमणोए तेमज श्रेष्ठिओए तेवो ज सुंदर पुरुषार्थ को. सांप्रदायिकताना बंधनोने दूर करी, उदारचरित थई तेमणे आ कळाओने पोषी तेना सर्वोच्च शिखर सुधी पहोंचाडी, आबू-देलवाडाना देहरा, उस्ताद शालिवाहनना चित्रो, खंभातना पार्श्वनाथ प्रभुना जिनालयना काष्ठशिल्पो तेनो बोलतो पूरावो छे. उस्ताचित्र निर्माणना तबक्का
अन्य चित्रकळानी जेम आ चित्रनुं काम पण केटलाक तबक्कामां करवामां आवे छे. सौ प्रथम तेमां कुदरती लेपद्रव्यथी के घसीने चित्रभूमिने सपाट करवामां आवे छे. त्यारपछी इच्छित चित्रनुं प्रमाण लई चित्रभूमि पर तेनु काचु चित्र दोरवामां आवे छे. 'अकबरा' नामना त्यारपछीना स्तरमां चित्रने अनुरूप रंगपूर्ति करी चित्र सुकवी देवामां आवे छे. ते सूकाई गया बाद चीकणी माटी, गुंदर, गोळ तथा नौसादर क्षारनुं मिश्रण तैयार करी पीछीनी मददथी ते चित्रमांना इच्छित भागने उपसावाय छे. पछी उपसावेलो ते भाग सूकाई जता तेनी उपर बे वार पीळा रंगनो हाथ मारी सोनाना वरखना पाना तेना पर लगाडाय छे. अने छल्ले पीछीनी मददथी चित्रना शेष भागोमां रंगपूर्ति करी आउट लाईन द्वारा चित्रना अंतिम तबक्काने पूर्ण कराय छे. विशेषे करी आ प्रकार- काम वेल-बुट्टा के फूल-पांदडादि प्राकृतिक चित्रणमां, अथवा स्त्री-पुरुषो के देव-देवीओना अलंकारो के वस्त्रादिना छेडा विगेरेमां तथा सिंहासन, चित्रबोर्डरादिमां जोवा मळे छे.
प्रांते प्रस्तुत लेखननुं मूळ अमारी राजस्थान विहारयात्रा छे. पू. गुरु म.सा. पू.आ.श्री. विजयसोमचंद्रसूरिजीनी निश्रामां अमे प्रायः ७० जेटला साधु-साध्वीजी भगवंतोए राजस्थानना केटलाक तीर्थोनी यात्रा करी. जिनालयोथी मंडित ते भूमिनी ज्यारे अमे स्पर्शना करी त्यारे अनायासे ज ते-ते तीर्थोनी, गामोनी कोईने कोई ऐतिहासिक के सांस्कृतिक सामग्री अमने जडी आवी. तेमांनी केटलीक सामग्रीओनुं अमारा वडे संकलन पण करायु. ते संकलनमांनी ज एक सामग्री ते उस्ता चित्रकळाना चित्रो. अत्यारे पण कदाच सेंकडो भाविको तीर्थयात्राए जता हशे. हजुय त्यां आवी
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