Book Title: Shrutsagar 2018 09 Volume 05 Issue 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर
सितम्बर-२०१८ वीर वाणी चित्त६ आणी, जाणि सुधा समाणि रे। गुरु वखाणी भविक प्राणी, चेति चतुर सुजाण रे आंकणी।। वीर०॥३२॥ गुरु प्रतइ बहुमान आपइ, विनय गुण अवगाह रे। इसीपरि विद्या भणंतां, सफल होइ जगि मांहि रे
वीर०॥३३॥ दान देई चित्त चिंतइ दीयउ मइ कोइ? आल रे। तेहनइ घरि थई लिखमी, जाइ थोडइ काल२ रे
वीर०॥३४॥ यथासगतइ घणी भगतइ'३, दीयइ दिवरावई दान रे। तेहनइ घरि घणी कमला, मिलइ अतहि प्रधान रे
वीर०॥३५॥ आपणइ चित्तइ गमइ जे नर ५, साधुनइ द्यइ भावि रे। दीयइ पछतावउ६ आणइ, रिद्धि तसु थिर ना थाइरे वीर०॥३६॥ तिरिय पंखी माणसा“ ना, करइ बाल वियोग रे। तेहनइ संतान न हुवइ, हूया मरइ सरोग रे
वीर०॥३७॥ सर्व जीवह कृपासागर, तेहनई बहु पुत्त रे। अणसुण्यउ जे भणई'२ सुणीयउ, बधिर ते सुविगुत्तरे वीर०॥३८॥ जे अदीठउ कहइ दीठउ, मनि करइ निरबंध रे। चंड६५ करमविपाक कालई, ते हुवइ जाचंध रे
वीर०॥३९॥ जाणतउ मनि अति असुंदर, भात पान ७ असार ८ रे। ते साधुनइ जे दीयइ नर, जरइ नही आहार रे वीर०॥४०॥ जीव अंकइ वन प्रजालइ, जे हणइ७३ वणराय रे। मधु पडावइ आंप पाडइ, मरि ते कोढी थाइरे
वीर०॥४१॥ ढाल ४ (छाहुलीनी) बलद महिष ऊंट ऊपरइ, अतिभारारोपण करइ। इणि परइ, ते ६ जीव मरि हुइ कूबडउ ए॥ ४६. चित्ति, ४७. प्रतिइं, ४८. अविगाहि, ४९. हुवइ, ५०. चित्ति, ५१. कांइ, ५२. ततकाल, ५३. थइ थुइ सकति घणीय भगतिइं, ५४. दीवारइ (अभयप्रतौ), ५५. जे, ५६. ‘पछतावउ न’ अभयप्रतौ विद्यते, ५७. 'ना' अभयप्रतौ नास्ति, ५८. माणुसां, ५९. विजोग, ६०. मरि मरि जाइ (अभयप्रतौ), ६१. हवइ ते, ६२. कहइ, ६३. सविगुत्त, ६४. मुनि, ६५. जेम (अभयप्रतौ), ६६. लेइ, ६७. पाणी, ६८. आसी, ६९. ‘ते’ अभयप्रतौ नास्ति, ७०. 'नर' (अभयप्रतौ), ७१. तसु नर (अभयप्रतौ), ७२. तसु जरइ (कोबा प्रतौ), ७३. हनइ (अभयप्रतौ), ७४. नइ (अभयप्रतौ), ७५. एणि, ७६. ‘ते’ कोबाप्रतौ नास्ति,
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36