Book Title: Shrutsagar 2018 09 Volume 05 Issue 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
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जग-जीवबंधव त्रिभुवन राय, भगवन भाषउ करिय पसाय । किणि किणि करम तणा" फल एह, भांजउ" सामी सयल संदेह
सितम्बर-२०१८
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॥१०॥
ढाल २
(गउडी माहे, बालुडा नी)
१८
इम पूछ्यउ भगवंत, वीर जिणेसर, मधुर वाणि एहवउ कहइ ए । सुणि गोयम विरतंत, ए जीव एकलउ, पुण्य पाप ना फल लहइ ए सेवइ आश्रव घोर, निंदक साधुनउ, च्यारि कषाय जिको करइ ए । कृतघन चित्त कठोर, आल पलापीय, पिसुन ते नरकइ अवतरइ ए तप संजम सुपवित्त, दान परायण, सहज सरल करुणानिलउ १५ ए । श्री गुरुवयण सरत्त, ते जीव मरि करि, देवलोक थाइ सुर भलउ ए आंपण काजइ प्रीति, मंडइ मित्र सुं", काज सर्यइ" विहडइ सही ए । जाणइ १९ कूडइ चित्त, परजीव वंचक, थाइ तिरिय संसय नहीं ए सरल चित्त सुकमाल, क्रोध रहित नित, न्याई दानइ आगलउ ए । साधु गुणे सुविसाल, रागी जीवडउ, ते हुइ माणस निरमलउ ए संतोषिण सुविनीत, सरल सोहागणि, सीलादिक गुणधारिणी ए । नारि जे जगहि वदीत, साच चवइ मुखी, पुरुष पणइ अवतारिणी ए जे नर चवइ" सदंभ, कूड कपट करि, वंचइ परिजन ” आंपणउ ए । नहीय वेसास सुलंभ, जेहनउ ते परिभवि, मरिय लहइ" महिलापणउ ए ॥१७॥ जे लंछइ वृष आस, बलद तणा वलि, वींधइ नाक विविध परइ ए । ते नर अतहि निरास, मरिय नपुंसक, थई संसारइ संसरइ ए निरदय मारइ जीव, न गिणइ जे परभव, दुष्ट चित्त जगि जाणिवउ ए । ते जीव मरिय सदीव, अलप आऊखउ, ऊपजिस्यइ मनि आंणिवउ ए राखइ जीव अनेक, करुणासागर, अभयदान २५ दायक हवइ६ ए। गिणियइ जे सुविवेक, ते नर भोगवइ, दीरघ आऊखउ चिर लगइ ए
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॥११॥
॥१२॥
॥१३॥
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॥१५॥
॥१६॥
॥१८॥
॥१९॥
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१०. भवियण (अभयप्रतौ), ११. तला (अभयप्रतौ), १२. भंजउ, १३. सुहपत्त, १४. सहजि, १५. करणिनिलउ, १६. सुं रत्त, १७. सिउं, १८. सर्या, १९. 'ति' (अभयप्रतौ), २०. चपल, २१. परियण, २२. 'ते' अभयप्रतौ नास्ति, २३. लहिस्यइ, २४. 'जे' अभयप्रतौ नास्ति, २५. अन्नदान, २६. जगइ

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