Book Title: Shrutsagar 2018 09 Volume 05 Issue 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 22 SHRUTSAGAR Septermber-2018 गौतमपृच्छा चौपाई साधुहंस १५ वीं शताब्दी गौतमपृच्छा चौपाई लावण्यसमय १५४५ गौतमपृच्छा स्तवन ऋषभदास १६७८ गौतमपृच्छा चौपई समयसुन्दरोपाध्याय १६९५ गौतमपृच्छा स्तवन श्रीसारोपाध्याय १६९९ गौतमपृच्छा नंदलाल १८९० गौतमपृच्छा सज्झाय रूपविजय १८वीं शताब्दी सोभचंद ऋषि एवं कतिपय अज्ञातकर्तृक भी प्राप्त होते हैं। कर्ता परिचय जैसलमेर दुर्ग में विश्व विरासत समान ज्ञानभंडार की स्थापना करने वाले श्रुतसंरक्षक खरतरगच्छाचार्य श्री जिनभद्रसूरीश्वरजी महाराज के शिष्य श्री जिनचंद्रसूरीश्वरजी महाराज की शिष्य परंपरा में समयध्वजजी महाराज - ज्ञानमंदिरजी महाराज - गुणशेखरजी महाराज - नयरंगजी महाराज हुए। ____वाचक नयरङ्गजी महाराज प्राकृत, संस्कृत और मरुगुर्जर भाषाओं के ज्ञाता थे और इन भाषाओं में आपने रचनाएँ की हैं। प्राकृत भाषा में विधि कन्दली प्रकरण की रचना की और सं० १६२५ में स्वयं ने उसकी संस्कृत में वृत्ति वीरमपुर में लिखी। आपने सं० १६२४ में संस्कृत भाषा की रचना परमहंस संबोध चरित्र वीतमयुर नगर में रची। मारुगुर्जर में आपकी निम्न रचनाएँ प्राप्त होती हैं प्रस्तुत गौतमपृच्छा संधि के अतिरिक्त मुनिपति चौपइ सं० १६१५, सतरभेदी पूजा सं० १६१८, अर्जुनमाली संधि सं० १६२१, कुबेरदत्त कुबेरदत्ता चौपइ सं० १६२१, केशी-प्रदेशी सन्धि, गौतमस्वामी छन्द, गुर्वावली, हुण्डिका १२५बोल लुकोपरि सं० १६१५, हुण्डिका ८४बोल तकराणामुपरि सं० १६१५, जिनप्रतिमा छत्तीसी, चौबीसी स्तवन एवं स्फुट लघुकाव्य आदि। आपकी शिष्य परंपरा ने भी पूर्व गुरुओं की परंपरा का अनुसरण करते हुए साहित्य-सेवा का क्रम जारी रखा, जो उल्लेखनीय है आपके शिष्य विमलविनयजी महाराज के द्वारा रचित अनाथी मुनि संधि, शांतिनाथ विनंती स्तवन, चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, जिनकुशलसूरि गीत, अरहन्नक चौढालिया, गजसुकुमाल गीत आदि प्राप्त होते हैं। इनके शिष्य मुनि राजसिंहजी महाराज हुए, For Private and Personal Use Only

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