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॥९॥
SHRUTSAGAR
Septermber-2018 मनमोहन मूरती देखत थै मेरी नैन अमीरस पूर भरी है, कहै' कीरपालसु मेरे गुसांइजी एसी अस्तुत हरी जु करी है
॥ श्री वै। सुवधिनाथजी वर्णनं ॥ सवेयौ २४ सौ ॥ शुभ सुंदर सुरति शीतल की नीरखी हरखी गुण गावत है, इक तार जिनंद को राखी हीयै प्रभु पुरनहार कहावत है। अरू' एक मनै करी ध्यान धरे शिर साहिब आण सुठावत है, इस जी(जि)नराजकी सेव करी हरी संपद रीझसु पाउत है ॥१०॥
॥ इति श्रीशीतलनाथजी वर्णनं ॥ सवेयौ २३ सौ ॥ याही संसार मै सार पदारथ है रत हे रत तोहि कु हेरा, तोहि का ग्यांन पिछांन’ लीया तब टाल दीया भव का अरु फेरा। तु शरणागति नायक लायक साहिब ध्यान थै सुख घनैरा। श्रीय को धांम श्रेयश जिनेशर नाम लीय हरी उठ सवेरा
॥११॥
॥ श्रीश्रेयंसनाथजी वर्णनं ॥ सवेइयो २३ सौ ॥
॥१२॥
लाल ही लाल बन्यौ मेरी साहिब लाल शरीर की क्रांत है नीकीः(की), लोचन लाल गुलाल वीराजीत मांनु विद्रूम्म की छब है फीकी' । श्रीवासपूज्य कै भाल सुसोभित रत्नजडीत है सोवन टीकी, अब कै आतुर होय रही हरी देखन जोत' जिनेसरजी की
॥ श्रीवासुपुज्यजी वर्णनं ॥ सवेयौ २४ सौ ॥ विमल्ल(ल)जिणंद है विमलमूरती कंचन वन सुतभ सुहावै'', स्यामा निज मात सुरंग है गात तसु अंग जात कुं सेवत भावै।
1. B कथ है, 2. B अस्तूत, 3. A शुभ 4. B प्रभु, 5. B ईमडी, 6. B रीझ सो पावत, 7. B पिचान, 8. B श्रेय को, 9. A वीकी 10. B ज्योति, 11. B सोहावे, 12. B श्यामा
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