Book Title: Shrutsagar 2018 09 Volume 05 Issue 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 15 कांनैय' कुंडल बांह बाजुबंध कौठै' नवलख हार हलकै, याहि विध पूजै ध्यांन धरे हरी ताह घरे लछीलील' भलकै Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीसुमतिनाथजी वर्णनं ॥ सवैयौ २४ सौ ॥ छठा जीनराज को नांम ग्रहौ' प्रानी ताहि कै नांम सै रीध लटै है, त्यां इत ओपद्रव याध ही व्याध ही कष्ट अनैष्ट तै' दर कटै है । सुमति कुं देह कुंमत्ति कुं टालत पाप अजान' सैठै' गहठै है, हरीयंद अखे श्रीपद्मजिनेसर तोहि नम्यां रस रंग रटे है ॥ श्रीपद्मप्रभू (भु) जिन वर्णनं ॥ सवेयौ २४ सौ ॥ सु सुपारस जेम कह्यौ पिण पार न है" कह्यौ जिन कुं, सुदू 'की उपम' एही वरे भ्रम सारथी सार कह्या इनकुं । सबला भवपार तर्या अरू तार कै तारक नांम धर्या तिन कुं, निसदिन पृथीसुतः" ध्यांन रखै हरी तोही कुं छोडि भजै किन कुं ॥ श्रीसुपारसनाथजी वर्णनं । सवेयौ २४ सौ ॥ चंद्रप्रभु चंद्र जेम वपु वर किरत " किलानिधि सुभ विते है, महसेन नरेसर अंगज हो तुम थै फिर उरकुं कौन गिनै है । हथ जोर रहै निसदिन दूयार मै'' सोही तो तोरी ही आस अतै है, याही ज अरज करी हरी नाथजी वंछित कीज अगाज सुने है ॥ श्रीचंद्रप्रभू (भु)जी वर्णनं ॥ सवेयौ २४ सौ ॥ सुविधिश जिनैश की अंगी विराजति अंग थै उप अनुप वरी है, सवी” संत ज्युं“ जाय नमै प्रभु पाय रहै लयलायक भाव'' धरी है । 14 For Private and Personal Use Only सितम्बर-२०१८ 11411 ॥६॥ 11611 11211 1. B कानसे, 2. B कोटि, 3. A लछीछील 4. B ग्रह, 5. B अनिष्ट सो, 6. B अग्यान, 7. B सोवे, 8. B पिन पारस नाहि, 9. B ओपम, 10. Bप्रथीसुत, 11. B किर्न, 12. B दोआर में, 13. B सब, 14. A B सबसंतजु, 15. B सुभाव

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