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श्रुतसागर
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कांनैय' कुंडल बांह बाजुबंध कौठै' नवलख हार हलकै, याहि विध पूजै ध्यांन धरे हरी ताह घरे लछीलील' भलकै
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॥ श्रीसुमतिनाथजी वर्णनं ॥ सवैयौ २४ सौ ॥
छठा जीनराज को नांम ग्रहौ' प्रानी ताहि कै नांम सै रीध लटै है, त्यां इत ओपद्रव याध ही व्याध ही कष्ट अनैष्ट तै' दर कटै है । सुमति कुं देह कुंमत्ति कुं टालत पाप अजान' सैठै' गहठै है, हरीयंद अखे श्रीपद्मजिनेसर तोहि नम्यां रस रंग रटे है
॥ श्रीपद्मप्रभू (भु) जिन वर्णनं ॥ सवेयौ २४ सौ ॥
सु सुपारस जेम कह्यौ पिण पार न है" कह्यौ जिन कुं, सुदू 'की उपम' एही वरे भ्रम सारथी सार कह्या इनकुं । सबला भवपार तर्या अरू तार कै तारक नांम धर्या तिन कुं, निसदिन पृथीसुतः" ध्यांन रखै हरी तोही कुं छोडि भजै किन कुं
॥ श्रीसुपारसनाथजी वर्णनं । सवेयौ २४ सौ ॥
चंद्रप्रभु चंद्र जेम वपु वर किरत " किलानिधि सुभ विते है, महसेन नरेसर अंगज हो तुम थै फिर उरकुं कौन गिनै है । हथ जोर रहै निसदिन दूयार मै'' सोही तो तोरी ही आस अतै है, याही ज अरज करी हरी नाथजी वंछित कीज अगाज सुने है
॥ श्रीचंद्रप्रभू (भु)जी वर्णनं ॥ सवेयौ २४ सौ ॥
सुविधिश जिनैश की अंगी विराजति अंग थै उप अनुप वरी है, सवी” संत ज्युं“ जाय नमै प्रभु पाय रहै लयलायक भाव'' धरी है ।
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सितम्बर-२०१८
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॥६॥
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1. B कानसे, 2. B कोटि, 3. A लछीछील 4. B ग्रह, 5. B अनिष्ट सो, 6. B अग्यान, 7. B सोवे, 8. B पिन पारस नाहि, 9. B ओपम, 10. Bप्रथीसुत, 11. B किर्न, 12. B दोआर में, 13. B सब, 14. A B सबसंतजु, 15. B सुभाव