Book Title: Shrutsagar 2018 06 Volume 05 Issue 01 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री जिनगुणप्रभसूरि विरचित सतरह भेदी पूजा स्तवन संपादक - आर्य मेहुलप्रभसागर कृति परिचय प्रसिद्ध श्लोक में जिनपूजा का महत्व बतलाया गया है - उपसर्गा: क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लय:। मन: प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनश्वरे ॥१॥ परमात्मा की पूजा से सभी उपसर्गों का क्षय हो जाता है, विघ्नरूपी लताएँ छिन्न हो जाती हैं, मन विषादरहित अपूर्व प्रसन्नता को प्राप्त करता है। जिनपूजा की महिमा आगमों, टीकाओं आदि अनेक स्थानों पर गणधरों, गीतार्थों सहित सभी ने गाई है। आगमकाल से लेकर अब तक के उपलब्ध शास्त्राधारों में जिनपूजा संबंधी विविध उल्लेखों में जिनपूजा के अनेक भेद-प्रभेद वर्णित हैं। विविध अपेक्षाओं से जिनपूजाएँ एक, दो, तीन, चार, पाँच, छ:, आठ, चौदह, सतरह, इक्कीस, एक सौ आठ और एक हजार आठ आदि अनेक प्रकार की उल्लिखित हैं। जिनमें वर्तमान परिपाटी में प्रतिदिन अष्टप्रकारी पूजा का विधान अतिप्रचलित है। शेष प्रकार के विधान कुछ प्रचलित हैं तो कुछ अप्रचलित भी हैं। ___अद्यावधि प्राय: अप्रकाशित और ४२५ वर्ष से अधिक प्राचीन पूज्याचार्य श्री जिनगुणप्रभसूरिजी महाराज द्वारा रचित प्रस्तुत सतरह भेदी पूजा स्तवन में जिनपूजा के सतरह भेदों को बताकर श्रावक को सम्यक्त्व निर्मल करने हेतु प्रतिदिन करणीय बताया गया है। राजप्रश्नीय सूत्र एवं ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र में सूर्याभदेव और द्रौपदी के द्वारा अपनी ऋद्धि के साथ विविध द्रव्यों से जिनपूजा करने का उल्लेख है, जिसे सर्वोपचारी पूजा कहते हैं। इसी सर्वोपचारी पूजा का विकसित रूप सतरह भेदी पूजा है। उपदेश तरंगिणी, संबोध प्रकरण, जिनलाभसूरिकृत आत्मप्रबोध आदि में सतरह भेदी पूजा का वर्णन है, परंतु उसके क्रम और प्रकार में अंतर पाया जाता है। प्रस्तुत स्तवन में सतरह भेद इस प्रकार बताये गये हैं- १. स्नपन पूजा, २. विलेपन पूजा, ३. वस्त्रयुगल पूजा, ४. वास पूजा, ५. पुष्पारोहण, ६. मालारोहण, For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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