Book Title: Shrutsagar 2018 06 Volume 05 Issue 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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जून-२०१८
॥३॥
॥४॥
॥५॥
श्रुतसागर
देवदत्त पासा अभिराम' दीनारे पूरिउ एक ठांम गाम लोक साथिइ रमइ ए जु हारेउ तु सघला लेज्यो जुजीपुं तु एक मुझ देज्यो जोज्यो लोभइ भोलव्या ए रमवा आविइ लोक लक्ष को न करइ तिहा कहिनु पक्ष दक्ष भला हारी वल्या ए देव प्रभावइ जीपइ कोई पणि नरभव हारीओ इम होइ सोई सहि गुरु इणि परि भणई ए
॥ इति पाशक दृष्टांत-२॥
॥ ढाल ॥ निज मनि कुतिग उपनइ, देवदानव कोइ। विद्याधर किंनर वली, जगि धांन जे होइ जोउ जोउ नरभव दोहिलु भमतां संसारि धान्य दृष्टांत हीइ धरी, बुझओ नरनारि ते सवि मेली एकठां, जरजूरण नारि। हाथि आपी कहइ जूजूआ, करि तुं सुविचार डोकरडी करडी प्रतिइ, सुणता चडइ टाढि । आढउ सरिसव माहीथी, तु अलगा काढि
॥६॥
॥१॥
॥द्रुपद।। ॥२॥
॥जोउ०२॥३॥
॥जोउ०२॥४॥
1 अभिगम 2aलख्य, bलक्ष 3 को कहिनउ तिहो न करइ 4वलइ 5 कहइ 6 चढी ताढि
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