Book Title: Shrutsagar 2018 06 Volume 05 Issue 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
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॥ इति चक्र दृष्टांत- ७ ॥
।। ढाल उलालानी ॥
द्रह' कोई दीप मझारे, जोअण लाख विस्तारे । उंडउ सहस ते जोअण, वाटलु अति मन मोहन
तीहां वसिइ जीवना लाख, काछिब एक बहु साख । द्रह माहि घणु अ सेवाल, एक दिनि थयु विसराल
आसू पूनिम चंद, देखी हुओ अ आणंद । काछिब सुकटंब तेडइ, वहिला हो वार न' जेडइ काछिब सकटंब आवीउ जेतइ, मलिओ अ सेवाल एते तइ । आव्या घणइ अ उमाहइ, नवि ते चंदलु चाह
नवि ते टलइ अ सेवाल, न देखइ चंद्र विशाल । नरभव ईणइए तोलइ, सोमविमलसूरि ईम बोलइ
॥ इति कच्छप दृष्टांत - ८ ॥
॥ आदि आदि जिणेसरू ए ढाल ॥
1 ग्रह 2 वेला बालन 3 aरतनभव, bनरभव
4 दरिउ
धुंसरु पूरव समुद्र पासइ, पश्यमइ समिल ज रही। वरसने सहसे एकठा, जु मिलइ सुरमहिमा सही
नरभव' लही जेणि, हारिओ' वली तेह लहइ नही । श्रीसोमविमलसूरिंद बोलइ, पुण्य कीजइ गहगही
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June-2018
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॥२॥
पूरव पूरव दसि ते धुंसरु ए, समिल समिल ते पश्यम पासितु ।
दोइ मिलइं किम एकठां ए, नवि मिलइ मिलइ वरस छ मासि तु पूरव२ द०॥१॥
॥३॥
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॥५॥
11211
पूरव० ॥३॥

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