Book Title: Shrutsagar 2018 06 Volume 05 Issue 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR www.kobatirth.org 27 ॥ इति चक्र दृष्टांत- ७ ॥ ।। ढाल उलालानी ॥ द्रह' कोई दीप मझारे, जोअण लाख विस्तारे । उंडउ सहस ते जोअण, वाटलु अति मन मोहन तीहां वसिइ जीवना लाख, काछिब एक बहु साख । द्रह माहि घणु अ सेवाल, एक दिनि थयु विसराल आसू पूनिम चंद, देखी हुओ अ आणंद । काछिब सुकटंब तेडइ, वहिला हो वार न' जेडइ काछिब सकटंब आवीउ जेतइ, मलिओ अ सेवाल एते तइ । आव्या घणइ अ उमाहइ, नवि ते चंदलु चाह नवि ते टलइ अ सेवाल, न देखइ चंद्र विशाल । नरभव ईणइए तोलइ, सोमविमलसूरि ईम बोलइ ॥ इति कच्छप दृष्टांत - ८ ॥ ॥ आदि आदि जिणेसरू ए ढाल ॥ 1 ग्रह 2 वेला बालन 3 aरतनभव, bनरभव 4 दरिउ धुंसरु पूरव समुद्र पासइ, पश्यमइ समिल ज रही। वरसने सहसे एकठा, जु मिलइ सुरमहिमा सही नरभव' लही जेणि, हारिओ' वली तेह लहइ नही । श्रीसोमविमलसूरिंद बोलइ, पुण्य कीजइ गहगही Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only June-2018 11211 ॥२॥ पूरव पूरव दसि ते धुंसरु ए, समिल समिल ते पश्यम पासितु । दोइ मिलइं किम एकठां ए, नवि मिलइ मिलइ वरस छ मासि तु पूरव२ द०॥१॥ ॥३॥ 11811 ॥५॥ 11211 पूरव० ॥३॥

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