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श्रुतसागर
जून-२०१८ ॥ इति युग दृष्टांत नवम-९॥
॥ ढाल लुहडाअजितानी॥ सुर किंनर कोई निअ मनि कुतिग कांमि, थंभ चूरण करीनइ पुहचइ सुरगिरि' ठामि । नलि चूरण पूरी दशो दशइ उडाडइ, ते सवि परमाणु क्षेत्र अनेकइ पाडइ वली थंभ करइ कोइ परमाणू लेई तेह, एहइ वली होइ हारिउ नरभव जेह। ते जो नवि लहीइ धर्म विना संसारि, ईम जांणी सूधओ धर्म करु नरनारि ईणइ परि दश बोले दोहिलु नरभव जांणी, सील समकित पालु अजूआलु निज प्रांणी। श्री हेमविमलसूरि गुरु वचने मन आंणी, श्रीसोमविमलसूरि बोलइ एहवी वाणी
॥इति दस दृष्टांत सज्झाय संपूर्णः॥न 1aसुरगरि, bसुरगिरि 2 जंपइ
श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं अथवा किसी महत्त्वपूर्ण कृति का नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, जिसे हम अपने अंक के माध्यम से अन्य विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादनकार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? इस तरह अन्य विद्वानों के श्रम व समय की बचत होगी और उसका उपयोग वे अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों के सम्पादन में कर सकेंगे.
निवेदक सम्पादक (श्रुतसागर)
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