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SHRUTSAGAR
May-2016 सदैव वाचकों में ही निहित है। जो हृदय में आनन्द उत्पन्न करता है, विद्वज्जनों के, पण्डितों के ज्ञान से, मंथन से एवं सत्कर्मप्रवृत्ति से इस भवन का जन्म हुआ है। यह भवन बुद्धि के सागर समान बुद्धिसागरसूरिजी के शरीररूप ज्ञानभक्ति की अर्चना से सेवित है। देवमुख जैसा कान्तियुक्त सुन्दर मंदिर जो संसार भावना (प्रपंच भावनाओं)से मुक्त करता है वैसे मंदिर को प्रणाम हो।
पद्माब्धेश्चरणेन पुष्पितमिदं, हंसेन पद्मं यथा। विद्याबुद्धिसुखप्रदं हितकर, श्वेताम्बरं निर्मलम् ॥ सौरिस्थाऽजयसागरेण विधितं, प्रद्योतितं जीवितम्। वन्दे सुन्दरमन्दिरं सुरमुखं, संसारनिर्मुक्तये ॥४॥
अर्थः जैसे सूर्य से कमल विकसित होता है वैसे ही पद्मसागरजी के चरणकमलों के प्रकाश से यह मंदिर विकसित हो रहा है। जो विद्या, बुद्धि से उत्पन्न सुख देनेवाला है। जो हितकर है तथा जैन श्वेताम्बरों का निर्मल मंदिर है। जिसमें आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी का विधान (मार्गदर्शन) किया है। जिससे की यह भवन मूर्त होते हुए भी एक अमूर्त की तरह जीवित है। देवमुख जैसा कान्तियुक्त सुन्दर मंदिर जो संसार भावना (प्रपंच भावनाओं)से मुक्त करता है वैसे मंदिर को प्रणाम हो। मायाबन्धजसान्धकारनिवहस्फोटस्य विस्फोटकम्। झंझावातधरं सुदष्करमिदं, पापेन पापाऽत्मनाम्॥ भद्रं गर्भगृहं विराजितमिदं, लोकं च सत्यं यथा। वन्दे सुन्दरमन्दिरं सुरमुखं, संसारनिर्मुक्तये ॥५॥
अर्थ : माया(अज्ञान) के बन्धन से जन्मे अन्धकार विशेष का जो विस्फोट करता है। पापात्माओं के लिए यह भवन अतिवृष्टि का प्रवाह है। अर्थात् पापात्मा उनकी अयोग्यता के कारण इस ज्ञानमंदिर के पवित्र प्रवाह में बह नहीं सकते। मंदिरो में जैसे देवों का स्थान गर्भगृह में होता है। वैसे ही यहाँ पर सूरियों का निवास होने से यह ज्ञानमंदिर भी गर्भगृह समान पवित्र है। जैसा निवास माँ सरस्वती का सत्य लोक में है, वैसे ही यहाँ पर भी माँ सरस्वती का निवास होने से यह मंदिर सत्यलोक के समान है। देवमुख जैसा कान्तियुक्त सुन्दर मंदिर जो संसार भावना (प्रपंच भावनाओं)से मुक्त करता है वैसे मंदिर को प्रणाम हो।
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