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ज्ञानमन्दिरपञ्चकम्
मञ्जूनाथ भट्ट श्रीकैलासमहोदधिप्रकटितं, ज्ञानाश्रयं मन्दिरम्। सर्वेषां मनमोहकं सुमधुरं, वाणीविलासाऽलयम्॥ मन्दानां मदनाशकं जिनयुतं, श्रीवीरतीर्थाऽमृतम्। वन्दे सुन्दरमन्दिरं सुरमुखं, संसारनिर्मुक्तये ॥१॥
अर्थ : आचार्य श्री कैलाससागरसूरि महाराज द्वारा प्रेरित ज्ञान के आश्रय स्वरूप यह मन्दिर जो सुमधुर होने से सबका मनमोहक है। जो स्मितहास्यस्वरूप वाणी (शुभवाणी) का निवास है। अज्ञानीओं के अहंकार को नाश करनेवाला, जो सभी जिनप्रभुओं (२४ तीर्थंकरों) से युक्त है तथा विशेष रूप से प्रभु महावीर का तीर्थामृत है। देवमुख जैसा कान्तियुक्त सुन्दर मंदिर जो संसार भावना (प्रपंच भावनाओं)से मुक्त करता है वैसे मंदिर को प्रणाम हो।
श्रीप्राचार्यसुहेमचंन्द्रलसितं, मध्यस्थखंण्डाऽन्वितम्। सम्राट्सम्प्रतिसंङ्ग्रहालययुतं, भक्तस्य मुक्तिप्रदम् ॥ वाणीकंकणटंकणेन सहितं, माङ्गल्यदं संततम्। वन्दे सुन्दरमन्दिरं सुरमुखं, संसारनिर्मुक्तये ॥२॥
अर्थ : जो हेमचंद्राचार्य नामक मध्य(मुख्य) खण्ड से युक्त है। जिसमें सम्राट सम्प्रति नामक संग्रहालय है जो अपने नूतन ज्ञान से भक्तों को भ्रम से मुक्त करता है। जहाँ वाणी के कंकण से उत्पन्न झनकार की तरह टंकण (Typing) होता है जो सभी को माङ्गल्य प्रदान करता है। देवमुख जैसा कान्तियुक्त सुन्दर मंदिर जो संसार भावना (प्रपंच भावनाओं) से मुक्त करता है वैसे मंदिर को प्रणाम हो। हस्ते पाण्डुलिपिं यथा जिनगणान्स्वस्मिंश्च संस्थापितम्। दृष्टिं वाचकपूरुषेषु निहितं, हृन्मानसं सूरिजम् ॥ भक्त्या सार्चितबुद्धिसागरतन, सूरिं च संसेवितम्। वन्दे सुन्दरमन्दिरं सुरमुखं, संसारनिर्मुक्तये ॥३॥
अर्थः यह श्लोक मंदिर की आत्म-शारीरिक कल्पना को कल्पित करता है कि यह मंदिर आत्मस्वरूप से जिनगुणों को अपने में स्थापित करता है वैसे ही उसके करकमलों में पाण्डु आदि लिपियों को धारण किया हुआ है। जिसकी दृष्टि
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