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SHRUTSAGAR
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May-2016 लक्ष्यार्थ- तमरों की आवाज अधिक सुनाई पड़ रही है। __ प्रयोजन- ग्रीष्म ऋतु तुरंत आनेवाली है। इसमें शुद्धा लक्षण लक्षणा घटित होती है। शुद्धा लक्षणा -
७. कुन्देहि कराविज्जइ तह कारिज्जइ नवेहि लवलेहि। जं ताण परिमल वहो गन्धवहो मारइ उपत्थे।॥५.७७।।
मुख्यार्थ- मुचुकुंद और ताजे लवल के फूलों से ये कार्य कराया जा रहा है कि जिससे उनकी सुगंध का वहन करनेवाला पवन यात्रियों को मार डालता है।
मुख्यार्थ बाध- मुचुकुंद और ताजे लवल के फूलों की सुगंधवाले पवन यात्रियों को मार नहीं सकते। ____ लक्ष्यार्थ- मुचुकुंद और ताजे लवल के फूलों की सुगंध इतनी ज्यादा है कि यात्रियों को अपनी प्रिया की याद आ जाती है और प्रियजन का मिलन न हो सकने पर वे मरे से हो जाते हैं। दुःखी हो जाते हैं।
प्रयोजन- हेमंत-शिशिर ऋतु का आगमन हो चुका है, यह बातना है। इसमें शुद्धा लक्षणा घटित होती है। शुद्धा लक्षणा - ८. पट्टीअ चन्दिम-रसं चन्दिम-रस-डल्लिरं चओर-कुलं।
मुख्यार्थ- चाँदनी के रस को पीनेवाला चकोर पक्षियों का वृन्द चाँदनी का रस पीने लगा।
मुख्यार्थ बाध- चाँदनी चन्द्र की आभा है। इसमें से कोई रस नहीं निकलता, इसलिए यहाँ पर चकोर पक्षी का वृन्द चाँदनी का रस नहीं पी सकता।
लक्ष्यार्थ- रात में चकोर पक्षियों का वृन्द मस्त बनकर घूम रहा है।
प्रयोजन- पूर्ण चन्द्रमा की चाँदनी पृथ्वी पर फैल रही है। रात हो चुकी है। चाँदनी की अधिकता बताना प्रयोजन है।
इसमें शुद्धा लक्षणा घटित होती है।
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