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SHRUTSAGAR
May-2016 प्रयोजन- रात्रि को उज्ज्वल और आनन्ददायक प्रकाशयुक्त बताना प्रयोजन है।
इस में कार्य-कारण भाव सम्बन्ध है, इसलिए शुद्धा लक्षण लक्षणा है। शुद्धा लक्षणा -
२. उदंड-बाहु-दण्डा जस्सिं कुंढासहा सयमकुण्ढा । कंतंगा कन्त-गुणा नय-पंथे पन्थिआ पुरिसा ॥१.१९॥
मुख्यार्थ- जहाँ प्रचंड बाहुदण्डवाले, आलसियों को सहन न करनेवाले, स्वयं आलसी न हों, ऐसे मनोहर अंगवाले और मनोहर गुणवाले पुरुष न्याय मार्ग के यात्री हैं।
मुख्यार्थ बाध- न्याय कोई मार्ग नहीं है कि उस पर चला जा सके।
लक्ष्यार्थ- न्याय मार्ग पर चलनेवाले यात्री प्रचंड बाहुदण्डवाले और स्वयं प्रवृत्तिशील होते हैं। न्याय के अनुसार कार्य करनेवाले उत्साही और विकासशील कार्य करनेवाले हैं, वे सब को अच्छे लगते हैं।
प्रयोजन- न्याय की महत्ता बताना प्रयोजन है। इसमें शुद्धा लक्षण लक्षणा
है।
उपादान लक्षणा -
३. माईण अमोसासीसयाण राया अमूस-परिवारो। अमुसा-वाई वुट्टो धण-बुट्ठी-रयण-विट्ठीहि ॥१.८५।।
मुख्यार्थ- सत्यभाषी परिवारवाला स्वयं सत्यवादी राजाने, सत्य आशीर्वादवाली माताओं पर धन और रत्नों की वष्टि की।
मुख्यार्थ बाध- राजा सजीव है, वह वर्षा नहीं कर सकता।
लक्ष्यार्थ- सत्य आशीर्वाद देनेवाली माताओं को राजा ने धन और रत्न दिये।
प्रयोजन- राजा ने धन और रत्न अधिक मात्रा में दिया। यहाँ उपादान शुद्ध लक्षणा घटित होती है।
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