________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
26
श्रुतसागर
मई-२०१६ शुद्धा लक्षणा - ९. होदु जयस्सोत्तंसो तुह कित्तीए अपुरवाए ॥७.९६॥ मुख्यार्थ- (राजन्) अपकी अपूर्व कीर्ति जगत का मुकुट बने।
मुख्यार्थ बाध- कीर्ति कोई मूर्त चीज या पदार्थ नहीं है, कि वह मुकुट बन सके।
लक्ष्यार्थ- (राजन्) आपकी कीर्ति जगत् में फैले।
प्रयोजन- राजा आर्य देश में इतना प्रभावशाली है, कि वह समग्र पृथ्वी, स्वर्गलोक का रक्षण करने की क्षमता रखता है। इस से उसकी यश, कीर्ति बढ़ेगी। उसकी श्रेष्ठता बताना प्रयोजन है।
इसमें शुद्धा लक्षण लक्षणा है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हेमचन्दाचार्य ने लक्षणा का प्रयोग बड़े मार्मिक ढंग से किया है। इन प्रयोगों को देखकर कई बार लगता है कि यह प्रयोग सामान्य है, लेकिन सूक्ष्मता से इन पर ध्यान दें तो इनकी लाक्षणिकता स्पष्ट से दिखाई देती है। यही कवि की सफलता है।
संदर्भ ग्रंथ
1. काव्य प्रकाश, व्याख्याकार- आचार्य विश्वेश्वर, प्रकाशक- ज्ञान मण्डल
लिमिटेड, वाराणसी १९६० 2. प्राकृत व्याश्रयमहाकाव्यम् - अनुवाद- आचार्यविजयमुक्तिचन्द्रसूरि,
आचार्यविजयमुनिचन्द्रसूरि, प्रकाशक- श्रीशान्ति-जिन-आराधक-मण्डलम् (मनफरा, कच्छ-वागड)
For Private and Personal Use Only