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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 25 May-2016 लक्ष्यार्थ- तमरों की आवाज अधिक सुनाई पड़ रही है। __ प्रयोजन- ग्रीष्म ऋतु तुरंत आनेवाली है। इसमें शुद्धा लक्षण लक्षणा घटित होती है। शुद्धा लक्षणा - ७. कुन्देहि कराविज्जइ तह कारिज्जइ नवेहि लवलेहि। जं ताण परिमल वहो गन्धवहो मारइ उपत्थे।॥५.७७।। मुख्यार्थ- मुचुकुंद और ताजे लवल के फूलों से ये कार्य कराया जा रहा है कि जिससे उनकी सुगंध का वहन करनेवाला पवन यात्रियों को मार डालता है। मुख्यार्थ बाध- मुचुकुंद और ताजे लवल के फूलों की सुगंधवाले पवन यात्रियों को मार नहीं सकते। ____ लक्ष्यार्थ- मुचुकुंद और ताजे लवल के फूलों की सुगंध इतनी ज्यादा है कि यात्रियों को अपनी प्रिया की याद आ जाती है और प्रियजन का मिलन न हो सकने पर वे मरे से हो जाते हैं। दुःखी हो जाते हैं। प्रयोजन- हेमंत-शिशिर ऋतु का आगमन हो चुका है, यह बातना है। इसमें शुद्धा लक्षणा घटित होती है। शुद्धा लक्षणा - ८. पट्टीअ चन्दिम-रसं चन्दिम-रस-डल्लिरं चओर-कुलं। मुख्यार्थ- चाँदनी के रस को पीनेवाला चकोर पक्षियों का वृन्द चाँदनी का रस पीने लगा। मुख्यार्थ बाध- चाँदनी चन्द्र की आभा है। इसमें से कोई रस नहीं निकलता, इसलिए यहाँ पर चकोर पक्षी का वृन्द चाँदनी का रस नहीं पी सकता। लक्ष्यार्थ- रात में चकोर पक्षियों का वृन्द मस्त बनकर घूम रहा है। प्रयोजन- पूर्ण चन्द्रमा की चाँदनी पृथ्वी पर फैल रही है। रात हो चुकी है। चाँदनी की अधिकता बताना प्रयोजन है। इसमें शुद्धा लक्षणा घटित होती है। For Private and Personal Use Only
SR No.525310
Book TitleShrutsagar 2016 05 Volume 02 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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