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SHRUTSAGAR
October-2015 से अंकित विशेष पाठ; पार्श्व रेखा-लाल-काला. लिपि-जैनदेवनागरी. पदार्थ प्रकार-कागज व प्रत की भौतिक स्थिति अच्छी है. यह प्रत कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूचि-भाग-२ में सूचिबद्ध है. जैन गूर्जर कविओ नामक संदर्भ ग्रंथ में इस कृति का उल्लेख नहीं है.
कृति परिचय-श्रीमहावीरजिन स्तवन-बंभणवाडामंडन नामक प्रस्तुत कृति है. इसके प्रणेता तपागच्छीय आचार्य श्रीसौभाग्यहर्षसूरि के शिष्यरत्न आचार्य श्री सोमविमलसूरि है. यह कृति प्राचीन गुजराती (मा.गु.)भाषा में गुम्फित है. जबकि रचना के अन्तर्गत अपभ्रंश की झाँकी न्यूनाधिक रूप से दृष्टिगोचर होती है. कुल ७ ढाल एवं १०३ गाथाओं में ग्रथित है. मरुदेश (राजस्थान) के बामणवाडा तीर्थमंडन चरम तीर्थंकर श्रीमहावीरस्वामी को लक्ष्य में रखकर यह स्तवन किया गया है. रचना रोचक, बोधप्रद एवं भक्तिप्रद है. कर्ता ने भगवान वर्द्धमान का जीवन चरित्र खूब सुन्दर ढंग से अपनी रचना में सफल रूप से चित्रण करने का प्रयास किया है. मंगलाचरण के रूप में श्रुतदेवता शारदा का स्तवन है. इसके बाद वीर विभु के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं का वर्णन किया गया है. विविध रागों में आबद्ध ७ ढालमय यह स्तवन जिनचरणानुरागियों के लिये गेय है तथा एक बार तो अवश्य ही यह पद्यपीयूष पेय है. अंतिम ढाल में बंभनवाडजी तीर्थ का स्थलसंकेत, तीर्थ व तीर्थंकर की महिमा, फलश्रुति आदि का सम्यक् गुणगान किया गया है. प्रतिलेखक ने स्तवन की ढाल-१ से ७ को स्वतंत्र होते हुए भी गाथाओं की गणना क्रमशः की है. इससे पाठकों को यह लाभ होगा कि जिस प्रसंग को पढना व जानना चाहें उसे निर्दिष्ट गाथाक्रम पर जाकर शीघ्र ही देख सकते हैं, अर्थात् सरलता से अपेक्षित प्रसंगगाथा तक पहुंच सकते हैं. गाथा-२ से लेकर १०२ में भगवान का चरित्रात्मक स्तवन है एवं गाथा-१०३ जो कलशरूप है, जिसमें रचनाप्रशस्ति है.
__ भाषा-अपभ्रंश मिश्रित पुरानी गुजराती में यह रचना है. इसमें एक और विशेषता देखी गयी है कि तत्कालीन ग्राम्यभाषा का अंश भी यत्र-तत्र पाया गया है. सम्भव है कि उच्चारण सौकर्य के कारण भी भाषागत मौलिक शब्दों का संक्षेपीकरण व मात्रालोप हुआ हो, यह भी संभव है कि पद्यात्मक रचना के कारण १. वर्तमान में यह तीर्थ सिरोही के पास बामणवाडजी नाम से प्रसिद्ध है.
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