Book Title: Shrutsagar 2015 10 Volume 01 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 14 अशुचिकर्म सविटालिउं, दिवस हूआ जब बार रे । सजन सहू आरोगीया, करइ तसु नाम विचार रे ॥ २९॥ धन-धन त्रिसला ॥ October-2015 घर आव्या लगि वाधीआ, राज रद्धि परिवार रे। ते भी नाम जं थापीठं, वर्द्धमानकुमार रे ॥ ३० ॥ धन-धन त्रिसला ॥ सजन सहू ते सही करी, उछव जय-जयकार रे । चडत पखई चंदा परि, वाधइ कुमर उदार रे ॥३१॥ धन-धन त्रिसला ॥ आठ वरस तसु जब हुयां, करइ प्रसंसा इंद्र रे । बालपणइ बल आगलु, वर्द्धमान जिनचंद रे ॥ ३२॥ धन-धन त्रिसला ॥ सुर एक वचन न मानतु, परख्या जोवा काज रे । जिन आमलक्रीडा करइ, सुर आवइ तेणि ठामि रे ॥ ३३॥ धन-धन त्रिसला ॥ राती आंखिइं फूफूतु, कालु अति विकराल रे । फणधर ते विष वींटीओ, नाठां बालक ततकाल रे ॥ ३४ ॥ धन-धन त्रिसला ॥ वर्द्धमान जई करी, साही वदन बलपूर रे । विसहर नाख्युं वेगलु, थई बालक जई ते दूर रे || ३५ ॥ धन-धन त्रिसला ॥ ते रमवा आव्यु वली, बोलइ वचन विलास रे । वर्द्धमानकुंअर प्रतिइं, जीत्यु तम्हे ततकाल रे ॥३६॥ धन-धन त्रिसला ॥ खंधि चडउ तम्हे माहरइ, तम तोलइ नहीं कोइ रे । जिनवर जवि खंधिइं चडि, सात ताड थयु सोइ रे ॥३७॥ धन-धन त्रिसला ॥ देखी कुमर सवे गया, नाठा नयर मझारि रे । राय सिद्धारथ वनव्या, स्वामी वयण अवधारि रे ।। ३८ ।। धन-धन त्रिसला ॥ वर्द्धमानन लेई ग, मोटओ कोई पिसाच रे । जिन पेखई ज्ञान करी, न गमी सुरपति वाच रे ॥ ३९॥ धन-धन त्रिसला ।। For Private and Personal Use Only अंगूठओ सरि चांपीओ, तव अडवडिओ भूमि अपार रे । धूजंतु धरणी पडिओ, सुर करइ जय-जयकार रे ॥४०॥ धन-धन त्रिसला ॥

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