Book Title: Shrutsagar 2015 10 Volume 01 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir October-2015 SHRUTSAGAR पांचमइ पंचवरण फूलमाल, छठइ देखइ चंद्रविशाल। सातमइ सूरिज तेज रसाल, आठमइ उन्नत धजा चु(व)साल ॥७॥ मुंमइ पूर्णकलश मन मोहइ, दसमइ पदमसरोवर सोहइ। इग्यारमइ खीरसागर सार, बारमइ देवविमान उदार ।।८।। तेरमइ रतनरेड अतिऊंचउ, चौदमइ विश्वानर घृत सिंचिउ। चऊदइ गगन थकी ऊतरतां, त्रिसला देखइं मुखि पइसंता ॥९॥ ढाल-१ वीवाहलानु त्रिसलाराणी जागी ए, जई निजपतिने पाय लागीआंए। चऊद सुपन अनुक्रमिई कह्यां ए, राय सिद्धारथ सवि संग्रह्यां ए॥१०|| निजमति अनुसारइं चिंतव ए, पुत्र हुसइ गुणवंत सही हवइ ए। त्रिसला नीद्रा नवि करई ए, जाणी बीजां सुपन सवि फल हरइ ए ॥११॥ दिनकर ऊगिओ जेतलई ए, तेड्या सुपनपाठक घरि तेतलइए। सास्त्रविचार जोई करी ए, भाखइ पुत्र हुसइ ऊत्तम चरी ए ॥१२॥ दान देई संतोषीआ ए, सवि सुपनपाठक गया हरखीआ ए। मात ऊपरि जिन धरिअ भगति, नवि हाल्या रह्या इसीअ युगति ।१३।। माय जाणइ मज्झ गर्भ गलिउ ए, मन चिंतित मनोरथ नवि फलिउ ए । मायनुं दूख जाणी करी ए, जिन हाल्या आस्या सवि फली ए॥१४॥ चैत्र सुदि तेरसि प्रसवती ए, त्रिसलाई जनम्या जिनपती ए। छपन्नकुमरी आवी करी ए, सूत्रकरम गाइं भावइ करी ए॥१५|| __ढाल-२ अंदोलानुओ आसन कंपिउं इंद्र, जाणी जनम जिणंद। घंटानाद करइंए, सुरवृंद संचरइ ए॥१६॥ पालक विमान रचेइं, नंदीसर आवेई। सुहम सुरपती ए, लेवा जाइ जिनपती ए॥१७॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36