Book Title: Shrutsagar 2015 10 Volume 01 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
SHRUTSAGAR
20
मासा बारमन्नि, राजगृहि नालंद चऊद, छ मिथ्यलां दोइ, भद्रिक गामि जिन रह्या ए । आ भीइ होइ, एक पग भूमि रहिया ए, सावथीइ इक, चउमासु छेहलु जिन रह्या ए ॥ निरमालडी ए पावाइं धरय ववेक ॥ ९४ ॥ त्रीस वरस गृहिवासि वसीअ, लीधर चारित्र । बार वरस ओपसर्ग सही, लहिउ नाण पवीत्र । त्रीस वरस केवलपणइ, पुहुवि करिउ विहार । वरस बहुत्तरि सयल आय पाली सुविचार । कती वदि अमावसि ए, वीर लहिउं निरवाण । राय अढार पोसह करीए, निरमालडी ।
दोइ दिन सुइ वखाण मणोरही ए ॥ ९५ ॥ श्रीगोयम गणधारनइ, ऊपनुं नाण । सुरनर किन्नर करइ रंग, धन ते सुविहाण । पटोर जग जाणी ए. श्रीसोहम गणधार । वरस सहस एकवीस लगि, जस साखा विस्तार । ओबीसमु जिणेसरू ए, कल्याणक दिन जेह, आराध भाविक ए, निरमालडी । एवंछित फल लहइए, मणोरही ए ॥ ९६ ॥
वाडा नाम गाम मरूदेश मझारि । तिहाँ तु पडिमा अछइ सार, गुणमहिमा विस्तार । चोर चरड नि खूंट खरड वली धाडीवाहा, तुम आसातना जे करइ ए ।
तेही एहवु होइ, अहभवि परभवि ते नरू ए । निरमालडी ए निश्च दोभागी होइ मणोरही ए ॥ ९७ ॥
वात पित्त नइ कफ सोफ, राफओ खस खयन, खास दूट्ठ कूट्ठ अनइ ओदर विकार । डमरू भमरू जानूओ प्रमेह अढारह,
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
October-2015

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36