Book Title: Shrutsagar 2015 10 Volume 01 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
October-2015
SHRUTSAGAR दसमी दिन ज्ञान ऊपर्नु, करइ ओछव देव रे। सखी देवनि सेवा, सारइ सुर मली ए॥७५।। समोसरण तिहां सुर रचइ, सखी परषद बार रे। सखी बारनि सार, दीइ प्रभु देशना ए॥७६||
॥ सामीउं ए वीर जिणंद ए ढाल-६॥ पावाए नयर प्रसिद्ध, श्रीजिनवर तिहां संचर्या ए। याग करइ ए अग्यारइ विप्र, शत चूंआलीस परवर्या ए॥७७|| पहिलओ ए श्रीइंद्रभूति, अगनिभूति बीजउ पवर। त्रीजु ए श्रीवायभूति, चुथु व्यक्त सुधर्मधर ॥७८॥ पांचमु ए सामि सुधर्म, छठओ मंडित जाणीइए। सातमु ए मोरीअपूत, अकंपित वली आठमु ए॥७९॥ नवमु ए अचलअभ्रात, मेतारय दसमु भलु ए। अग्यारमु ए श्रीप्रभास, आसपूरण गुण निरमलु ए ॥८०॥ ए सहूए मेली एक ठामि, याग करइ वधि साचवइए। सुरवरु ए जिनवर पासि, आवतइ एह चिंतवइ ए ॥८१॥ एहवु ए अतिभलु याग, संतोष्या सुर आवीआए। मुंकी ए गया ते क ठामि, तव चिंतइ ए भावीआ ए॥८२।। अह्मसमु ए नहीं को जाण, एह अजाण कहु किहां गया ए। को कहि ए वीरजिणंद, केवली पासिं ते गया ए ॥८३|| तओ धरइ ए अतिघणु गर्व, सर्व जाणइ ते कुण अछइए। संसय एए हरइ किम, इम कही इंद्रभूति गयु पछइ ए ।।८४|| पांचसिइं ए आगलि छात्र, बिरदावली बहु बोलताए। पुहुता ए ए कहइ किम, चडीओ मतंगज गाजतओ ए॥८५||
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36