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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१५ निर्धारित की गई है. इन पैंतालीस आगमों को मुख्य रूप से छः भागों में विभाजित किया गया है- ११ अंग, १२ उपांग, १० पयन्ना, ०६ छेदसूल, ०४ मूल, ०२ चूलिका इस ग्रन्थ में मूल आगम के साथ-साथ उनके अनुवाद तथा उनकी टीकादि में वर्णित विषयों का भी निर्देश किया गया है.
उपयोगिता - इस ग्रन्थ के उपयोग से आगमों में वर्णित विषयों को ढूंढने में व उनका क्रम जानने में सरलता रहती है. इसमें तीन प्रकार के पृष्ठांक दिए गए हैं. मलागम में ४५ आगमों के मूल पाठ के विषय हैं, अनुवाद में गुजराती अनुवाद के पाठ के विषय हैं तथा सटीक में मूल के अतिरिक्त नियुक्ति, चूर्णि, वृत्ति व भाष्य के पाठ के विषय हैं.
मूलागम का क्रमांक देखने के लिए आगमसुत्ताणि-मूल का पाठ देखा जा सकता है. अनुवाद का क्रमांक देखने के लिए आगमदीप के अनुवादवाला प्रकाशन देखना चाहिए तथा सटीक का क्रमांक देखने के लिए आगमसुत्ताणि-सटीक का प्रकाशन देखना चाहिए.
जिस भाग के पाठ हों, उस भाग के पृष्ठ पर वह विषय देखा जा सकता है. आगम सम्पादन, संशोधन व ग्रन्थ-सूचीकरण के कार्य में यह ग्रन्थ बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकता है.
बृहद् विषयानुक्रम का नाम 'आगम विषय दर्शन' रखा गया है. यहाँ पृष्ठांक नहीं दिया गया है, मात्र मूलांक ही दिया गया है. क्योंकि मूलांक तीनों प्रकाशनों में एक समान ही हैं.
उदाहरण के लिए पृ. सं. ८० पर सबसे नीचे विषय है - गृहस्थ और तीर्थीक का सावद्य जीवन व श्रमण का निरवद्य जीवन' यह विषय सूत्रकृतांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के अध्ययन-१, पुण्डरीक अध्ययन में मूलांक-६४६ पर है.
इस प्रकार आगम श्रुतप्रकाशन से प्रकाशित सूत्रकृतांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन, पुण्डरीक अध्ययन में मूलांक-६४६ पर यह विषय प्राप्त हो सकता
परिशिष्टादि- प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रारम्भिक पृष्ठों पर इस ग्रन्थ की विषयानुक्रमणिका, उनका वर्गीकरण व ४५ आगमों का संक्षिप्त विषयानुक्रम दिया गया है तथा अन्त के पृष्ठों पर आगम श्रुत प्रकाशन, अहमदाबाद से प्रकाशित व मुनि श्री दीपरत्नसागरजी
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