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SHRUTSAGAR
September-2015 परिशिष्ट-१ में अकारादिक्रम से प्राकृत शब्द एवं उनके हिन्दी अर्थ दिए गए हैं, पृ.५० पर परिशिष्ट-२ में वाद्ययंत्र के चार प्रकारों की वर्गीकृत सूची दी गई है तथा पृ. ५२ पर परिशिष्ट-३ में सन्दर्भग्रन्थसूची दी गई है. प्रारम्भ में सम्पादकीय के बाद पृ. १० पर संकेताक्षरों के अर्थ दिए गए हैं.
पुस्तक नाम : जैन आगम वनस्पति कोश
प्रकाशक : जैन विश्व भारती-लाडनूं,
प्रकाशन वर्ष ः ई. १९९६, पृष्ठ : १४+२+३४७ परिचय - आचार्य महाप्रज्ञ व मुनि श्रीचन्द्रकमल के द्वारा सम्पादित तथा जैन विश्वभारती लाडनूं से ई. १९९६ में प्रकाशित यह ग्रन्थ जैन साहित्य का एक अत्यन्त उपयोगी कोशग्रन्थ है. यह एक ऐसा ग्रन्थ है, जिसमें आगमों में प्रयुक्त वनस्पतिवाचक शब्दों का सचित्र परिचय दिया गया है.
आगमों में वनस्पतियों के नाम यत्र-तत्र विपुल मात्रा में मिलते हैं. जिनमें से अनेक की पहचान दुरूह है. इस कोश में आगमसाहित्य में प्रयुक्त अधिकांश वनस्पतिवाचक शब्दों का परिचय प्राप्त कर लिया गया है, परन्तु कुछेक शब्द अभी भी अज्ञात हैं. इस कार्य में मुनि श्रीचन्द्रजी ने बहुत ही अच्छा कार्य किया है. भारतीय जीवजन्तु वनस्पति के विषय में जानकारी प्राप्त करने वालों के लिए यह एक उपयोगी ग्रन्थ सिद्ध होगा.
स्थानांगसूल, उपासकदशा, भगवतीसूत्र, औपपातिक, राजप्रश्नीय, प्रज्ञापणासूत्र, जीवाभिगम, सूर्यप्रज्ञप्ति, आवश्यक, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, दशवैकालिक व उत्तराध्ययनसूत्र आदि आगम साहित्य में वनस्पतियों के नाम यत्र-तत्र पाए जाते हैं. कुल मिलाकर लगभग ४६६ शब्दों के ऊपर श्रीचन्द्रकमलजी ने विवेचना कर “जैन आगम वनस्पति कोश" के रूप में संयोजन करने का प्रयास किया है.
प्रस्तुत कोश में पृ. १ से ३३१ तक आगमों में प्रयुक्त विभिन्न वनस्पतिवाचक शब्दों का अकारादिक्रम से विस्तृत परिचय दिया गया है. सर्वप्रथम वनस्पति जगत के मूल शब्द जिस रूप में आगमों में उल्लिखित हैं, उन्हें यथावत् प्राकृत भाषा में दिया
गया है.
उसके आगे कोष्ठक में तत्सम संस्कृत रूप दिया गया है. कोष्ठक के आगे संस्कृत भाषा का अर्थ दिया गया है. संस्कृत रूप के प्राचीन ग्रन्थों में मिलनेवाले पर्यायवाची .
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