Book Title: Shrutsagar 2015 09 Volume 01 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संगणकीय ग्रंथालय प्रणाली में पेटांक की अवधारणा अरुणकुमार झा . आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में तकनीकी सहयोग से हस्तप्रत, पुस्तक, मैगजिन, आदि में स्थित सूक्ष्मातिसूक्ष्म जानकारी संग्रह की जाती है. इसी श्रृंखला में पेटांक माहिती भी एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है. यह शोधार्थियों के शोधकार्य में लक्ष्य तक पहुँचने के लिये मील का पत्थर साबित होता है. अध्येताओं व संशोधकों हेतु यह सुविधा उनके अध्ययन- संशोधन के कार्य को गति देता है तथा उनके श्रम व समय की बचत कराता है. सामान्यतया अन्य ग्रन्थालयों में ग्रन्थ के आवरण एवं शीर्षक पृष्ठ पर लिखित ग्रन्थ परिचय के आधार पर ही सूचीकरण किया जाता है. ग्रन्थ में स्थित कृतियों के परिचय को अलग से सूचीकरण में शामिल नहीं किया जाता है. जबकि ज्ञानमंदिर, कोबा में ग्रन्थस्थ सभी कृतियों का परिचय पेटांक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. जब एक ही ग्रंथ में एकाधिक स्वतंत्र स्तवन आदि अथवा टीका, अनुवाद आदि पुत्र-कृतियाँ क्रमशः विभिन्न पृष्ठों पर हों तो उन्हें पेटा कृति के रूप में जाना जाता है. प्रत्येक स्वतन्त्र या मिश्रित कृतिसमूह के लिये एक स्वतंत्र पेटा अंक दिया जाता है. इस पेटा अंक पर से इस अवधारणा का नाम ही "पेटांक" के रूप में रूढ हो गया है. स्वतन्त्र कृति जैसे प्रथम भक्तामर स्तोल, उसके बाद कल्याणमंदिर स्तोत्र, फिर कोई अन्य कृति लिखी हो, इस तरह क्रमबद्ध लिखी गई कृति को स्वतन्त्र कृति कहते हैं. मिश्रित कृतिसमूह यानि मूल भक्तामर स्तोत्र तथा उसके बाद कल्याणमंदिर स्तोत्र लिखा गया है, परन्तु कल्याणमंदिर स्तोत्र के साथ-साथ अर्थ भी लिखा गया होता है तो वह कल्याणमंदिर स्तोत्र मूल और अर्थ का मिश्रित कृति कहा जाएगा. उसका नाम दिया जाएगा 'कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अर्थ इसका अर्थ यह है कि कल्याणमंदिर के प्रत्येक श्लोक के साथ अर्थ भी हैं. इस तरह ग्रंथ में मूल के साथ एकाधिक पुत्र-पौत्रादि कृतियाँ हों तो ऐसे मिश्रित कृतिसमूह को एक ही पेटांक के रूप में दर्शाया जाता है. क्योंकि ये एक ही परिवार के For Private and Personal Use Only

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