Book Title: Shrutsagar 2015 09 Volume 01 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR September-2015 १०आ-१५अ- दसवें पत्र की दूसरी ओर से प्रारंभ होकर पंद्रहवें पत्र की अगली तरफ कृति का समापन हुआ हो. इस प्रकार पेटांक के पृष्ठांक दिये होने से वाचक अपेक्षित कृति तक शीघ्रता एवं आसानी से पहुँच सकता है. पेटांक रिमार्क- पेटांक के अन्दर यदि कृति से सम्बन्धित चित्र अथवा यन्त्र दिए गए हों, गाथाओं के परिमाण में अनियमितता हो, या कभी प्रतिलेखक एक ही कृति को दुबारा भी लिख देते है, तो इसकी सूचना इस कॉलम से प्राप्त हो सकती है. इससे शोधार्थियों के लिये किसी प्रकार का श्रम अथवा संदेह नहीं रह जाता है. पेटांक की उपयोगिता- वाचकों के लिये पेटांक की यह पद्धति बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुई है. इस पद्धति के द्वारा आप अपनी इच्छित कृति तक शीघ्रातिशीघ्र एवं सुगमतापूर्वक पहुँच सकते हैं. इच्छित कृति किन-किन हस्तप्रतों में लिखी गई है, किन-किन पुस्तकों में प्रकाशित हुई है एवं कौन-कौन से मैगजिन के किन अंको में प्रकाशित हुई है, यह पृष्ठ संख्या सहित वाचकों को पल भर में बता दिया जाता है. अन्यथा सैकड़ों स्तवनों के बीच से एक स्तवन को ढूँढना या किसी बड़ी कृति वाली पुस्तक की प्रस्तावना या परिशिष्ट आदि के बीच किसी गुमनाम कोने में स्थित कृति को ढूंढना प्रायः असंभव होता है. इस प्रकार आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर द्वारा विकसित पेटांक पद्धत्ति वाचकों, संशोधकों आदि के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध हो रही है. आधुनिक पुस्तकालय की सूचीकरण पद्धतियों में पेटांक की यह अवधारणा न होने के कारण पुस्तकों में स्थित महत्वपूर्ण कृतियों को ढूँढना दुष्कर हो जाता है. कई बार जब शोधार्थी अन्य ग्रन्थालय से ठोकरें खाकर हताश एवं निराश हालत में यहाँ आते हैं तब किसी ग्रन्थ में निहित पेटांकों तथा उनसे जुड़ी हुई उन कृतियों के विषय में जब उन्हें पता चलता है, तो उनके चेहरे पर प्रसन्नता और अहोभाव दृष्टिगोचर होता है. यही ज्ञानमन्दिर की अनुपम उपलब्धि है. For Private and Personal Use Only

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