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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१५ नाम एवं अन्य भाषाओं के नाम भी दिए गए हैं. वनस्पत्ति का उत्पत्ति स्थान तथा उसके क्षेत्रों का भी उल्लेख किया गया है. प्रत्येक वनस्पति का आकार-प्रकार व लक्षणों का वर्णन करते हुए रंगीन एवं सादे चित्र भी दिए गए हैं, जो इस ग्रन्थ को उपयोगी बनाने में अधिक सिद्ध होते हैं.
उपयोगिता - यह ग्रन्थ विद्वानों तथा शोधकर्ताओं के कार्य में बहुत बड़ा सहायक सिद्ध होता है. इस ग्रन्थ से वनस्पति जगत को समझने की सुविधा तो मिलेगी ही, साथ ही चिकित्सा के क्षेत्र में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान सिद्ध हो सकता है. इसकी विशिष्टता इसलिए और भी बढ़ जाती है, क्योंकि यह इस तरह का पहला संग्रह है और यह सुन्दर चित्रों के साथ प्रकाशित किया गया है.
जैसे- पृ. १०१ पर दाहिनी ओर से एक शब्द है- 'गोधूम'- उसके आगे कोष्ठक में उसकी संस्कृत छाया लिखा है-(गोधूम), उसके आगे उसका हिन्दी नाम दिया गया है- गेहूँ, फिर उसके प्रमाणस्थल का निर्देश है- 'भ०, ६/१२६; २१/६, प०, १/४५/१. उसके नीचे उसका श्वेतश्याम चित्र दिया गया है और उसके नीचे गोधूम के पद्यमय संस्कृत पर्यायवाची नाम दिए गए हैं
गोधूमो यवकश्चैव हुडुम्बो म्लेच्छभोजनम्।
गिरिजः सत्यनामा च रसिकश्च प्रकीर्तितः॥ उसके नीचे इस श्लोक का सन्दर्भस्थल दिया गया है- 'धन्व०-नि०-६/८५, पृ.२६०. उसके नीचे उसका अर्थ दिया गया है- गोधूम, यवक, हुडुम्ब, म्लेच्छभोज, गिरिज व रसिक, ये गोधम के पर्याय हैं. उसके नीचे अन्य भाषाओं में इसके नाम दिए गए हैं- 'हिं० - गेहूँ, बं० - गम, म० - गहूं, गु० - घेऊ, घउ, क० - गोधी, ते०गोदुमेलु, फा० - गंदुम, ता० - गोदूमै, अ० - हिंता, अं० - Wheat (व्हीट) ले० - Triticum Satvum Lam, (ट्राईटिकम सटाईवम) Fam Gramineae (मिनी).
उसके नीचे गेहूँ के उत्पत्तिस्थान दिए गए हैं.- ‘अनेक प्रान्तों में इसकी खेती की जाती है. संसारभर में अन्न के लिए इसकी उपज की जाती है. यह मैसूर मद्रास में कम होता है. उत्तर भारत में यह अधिक होता है. उसके नीचे विवरण दिया गया है- 'इसके पौधे जव के समान होते हैं. यद्यपि इसकी ३-४ जातियाँ होती हैं, तथापि उपर्युक्त जाति ही अधिक बोई जाती है. इसके अनेक प्रकार होते हैं.
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