Book Title: Shrutsagar 2015 09 Volume 01 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 17 मलयगिरिया वृत्ति का समावेश किया गया है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सितम्बर-२०१५ विशेषावश्यकसूत्र - विशेषावश्यक भाष्य तथा उसकी मलधारिया वृत्ति, कहींकहीं कोट्याचार्य की वृत्ति का आधार लिया गया है. दशवैकालिकसूत्र - दशवैकालिक की निर्युक्ति, भाष्य, अगस्त्य चूर्णि जिनदास चूर्णि तथा हारिभद्रया वृत्ति का समन्वय किया गया है. उत्तराध्ययनसूत्र - उत्तराध्ययन की निर्युक्ति, चूर्णि, शान्त्याचार्य की बृहद्वृत्ति व नेमिचन्द्र की सुखबोधा वृत्ति को समवेत किया गया है. नन्दीसूल - नंदीसूल की चूर्णि, हारिभद्रीया वृत्ति और मलयगिरिया वृत्ति, कहींकहीं श्रीचन्द्रसूरिकृत टिप्पणक का भी उपयोग किया गया है. अनुयोगद्वारसूल - अनुयोगद्वार की चूर्णि, हारिभद्रीया वृत्ति व मलधारिया वृत्ति. इसके अतिरिक्त ओघनिर्युक्ति व पिंडनिर्युक्ति का भी उपयोग किया गया है. प्रस्तुत कोश के प्रथम भाग में पृष्ठ सं. १ से ४३ तक भूमिका, प्रस्तावना, सम्पादकीय, सन्दर्भग्रन्थ सूची तथा विषयसूची दी गई है, उसके बाद पृष्ठ सं. १ से ७२४ तक आगमों तथा उनके व्याख्याग्रन्थों- निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि व वृत्ति में प्रयुक्त कथाओं, दृष्टान्तों तथा घटनाओं की विषयानुसार जानकारी दी गई है. इसी प्रकार दूसरे भाग में पृष्ठ सं. १ से ४३ तक भूमिका, प्रस्तावना, सम्पादकीय, सन्दर्भग्रन्थ सूची तथा विषयसूची दी गई है, उसके बाद पृष्ठ सं. १ से ६५८ तक छेदसूत्रों तथा उनके व्याख्याग्रन्थों में चर्चित विषयों की जानकारी दी गई है. उपयोगिता - यह ग्रन्थ विद्वानों तथा शोधकर्त्ताओं के कार्य में बहुत उपयोगी सिद्ध होगा. वाचकों को इस ग्रन्थ के माध्यम से आगमों में वर्णित कथाओं, दृष्टान्तों तथा घटनाओं का सन्दर्भसहित परिचय प्राप्त होता है, साथ ही कौन से ग्रन्थ के किस स्थान में उनका प्रयोग किया गया है, इसकी भी जानकारी प्राप्त होगी. अध्ययन, संशोधन, सम्पादन आदि क्षेत्रों में यह कोशग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सकता है. For Private and Personal Use Only - उदाहरण के लिए प्रथम भाग के पृ. १२९ में दाहिनी ओर एक शब्द है'आशातना' - उसके आगे उसका अर्थ दिया गया है- अवमानना, अर्थात् ज्ञान आदि गुणों का नाश करनेवाली क्रिया. उसके नीचे आशातना की परिभाषा, इसके प्रकार तथा आशातना की फलश्रुति दी गई है. उसके सामने उसके सन्दर्भस्थल का (ओ.नि.-५२६, ५२७, ५२९, ५३०) संकेत दिया गया है.

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