________________
घोषाल चरित्र ।
धवल सेठ रयनमंजूषाके पास और देवसे दंड __ जब धवलसेठने दूतोको: कृतकार्य हुआ न जाना और निराशाका उत्तर मिल गया, तब उस निर्लज्जने स्वयं रयनमजूषा पास उसे फुसलाने का विचार किया । ठीक हैं कहा हैं
य: कश्चिन् मकरध्वजस्य वश गः, कि ब्रमहे तत्कृते । नो लज्जा न च पौरुषं न कुलं, कुत्रास्ति पापान्विते ।। नो हौयं च पितुगुरोन महिमा, कुत्रास्ति धस्थिति। नो मित्रं न च बांधवा न च गृहं, वस्त: स्त्रियं पश्यति ॥
अर्यात-जो पुरुष कामके वश हो रहा है, उसकी क्या कथा है। उसको न लज्जा , न बल, न कुल न धंयं, न धर्म, न गुरु, न पिता, न मित्र, न माई, और न घर आदि कुछ भो नहीं दिखता ! केवल एक स्त्री ही स्त्री उसे दिखा. करती हैं । और भी कहा है ..
कामार्तानां कुत: पापं, पापार्थीनां कुतः सुखं । नास्ति तत्प्राणिनां कम्भ, दुःखदं यन्न कामजम् ।। यथा माता यथा पुत्री, यथा भगिनी च स्त्रियः । कामार्थी च पुमानेता, एकरूपेण पश्यति ।।
अर्थात्-कामी नरको क्या पाप नहीं लगता ? और पापीको क्या सुख हो सकता है ? नहीं, कभी नहीं देखो, कामी मर माता बहिन और पुत्री सबको स्त्री के ही रूपमें देखता हैं। इसी प्रकार शीघ्र ही वह पापी कामांध सेठ निर्लज्ज होकर उस सती के निकट पहुँचा । वह धर्मधुरन्धर