Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 164
________________ श्रोपाल चरित्र । श्रीपालको सेवा करो। क्योंकि यदि वह एक ही बीरको आज्ञा कर देगा तो वही वीर तुम का क्षण भर में संहार कर डालेगा।' तब दूत के ऐगे वचन सुनकर वो रदमन बोले-'इस दृष्ट को खाल निकलवाकर भूना भरा, अर्थात मार डालो। यह मेरे ही सामने बार मेरा निंदा करता हैं, और मन में तनिक भो शशका नहीं करता ।' तब मंत्री बोले-'महाराज दूतोपर क्रोध नहीं करना चाहिए इनका स्वभाव ही यह है। ये तो अपने स्वामोके रे ये निडर होकर कठिन से कठिन शब्द . बोलते हैं । इनको कोई नहीं मारता है। इनका साहस अपार होता है कि पर चक्र में जाकर भो निःशंक हो स्वामी के कार्य में दत्तचित्त होते हैं ये लोग अपने स्वामी के काय आगे राज भवको भी तुच्छ गिनते है । ये लोग ऐसे शूरवोर होते हैं कि दुसरेवी ममामें जहां इनका कोई सहायक नहीं है. वहां पर भी अपने स्वामोकः कोनि और परचक्रको निंदा करते हैं। . इनके मन में मदा अपने स्वामो का हित हो विद्यमान रहता है । इसलिये महार] ! इ को ऐ।। नाम देना चाहिये, . कि जिपका बखान अपने स्वामी तक करता जाय, क्योंकि जिनके कुल परम्पराम राज्य चला आ रहा हैं, वे दर्ताको । बहुत सुख देते हैं इसलिए आप भो यशक भागी होओ। यदि दूत की आप मारोगे तो अपवाद होगा, क्योंकि इन्हें कोई कभी नहीं मारता, ये चाहे जो कुछ क्यों न कहे । ये . बेचारे स्वामी बलसे गजते हैं।' तब धो रदमनने दूतका सम्मान कर उसे बहुतसा द्रव्य दिया और कहा कि तुम थापालसे जाकर कह दो, कि युद्ध में जिसकी विजय होगी वही राज्य करेगा । तब दूत नमस्कार कर वहांसे गया और जाकर भोपालसे सब वृत्तांत कह लिया कि वीरदमनने कहा है कि 'संग्राममें आकर जुटो और बल हो तो राज्य ले लो।'

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