Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 171
________________ श्रीपालका राज्य करना । श्रीपालका राज्य करना अशुभ कर्म भयो दूर सब शुभ प्रगटयो भरभू । राज्य करे विलसे विभव, श्रीपाल बलर ॥ कोनों यश भुवि लोक में, दुर्जनके उरु साल । सकल जीव रक्षा करी, महाराज श्रीपाल ॥ १६७ इस प्रकार राजा श्रीपाल आठ हजार रानियों सहित इन्द्रके समान सुखपूर्वक करल व्यतीत करने लगे । देश देश में इनकी प्रख्याति वह गई। अनेक देशों के बडेर राजा इनके आज्ञाकारी हो गये। जो राजा लोग अनेक द्वीपों और देशोंसे साथ पहुँचाने आये थे, सो सबको यथायोग्य सन्मानपूर्वक दिया और प्रजाका प्रीतिसे पुत्रवत् पालन करने लगे । नित्यप्रति चार प्रकार के संघको चारों प्रकारके दान भक्तिभाव से देने लगे । दुःखित तो कोई नगर में वुभुक्षित हो क्या राज्यभर में कठिनतासे मिलता था । इत्यादि राज्यवैभव सब कुछ था और इनको किसी जातकी कमी नहीं थी, तो भी ये सब सुखके मूल जिनधर्मको नहीं भूलते थे । नित्य नियमानुसार वर्धमान रूपसे पट् आवश्यकों, देवपूजा, गुरुसेवा, स्वाध्याय, संयम, तप और दानमें यथेष्ट प्रवृत्ति करते थे । . इस तरह राज्य करते हुए श्रीपालका मुख से समय जाता था। कितने दिनों बाद मैतासुन्दरीको गर्भ रहा, उसे अनेस प्रकार के शुभ दोहले उत्पन्न हुए और थोपालने उन सबको पूर्ण किये। इस तरह जब दश महिने हो गये, तब शुभ घड़ी मुहूर्तमें चन्द्रमाके समान उज्जवल कांतिका धारी पुत्र हुआ । पुत्रजन्मसे सर्व कुटुम्ब व प्रजाको अत्यानंद हुआ, और पुत्रजन्मोत्सव में बहुत द्रव्य खर्च किया गया। याचक जननिहाल कर दिये गये । पश्चात् ज्योतिषोको बुलाकर गृहादिक व्योरा पूछा,

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