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श्रीपाल चरित्र । राजाओंके वश करने आदिका कुछ समाचार कह सुनाया तम बीरदमन वोला__ 'रे दूत ! द मानता हैं, कि " राय और स्त्री भो कोई किसोको मांगने से देता है ? ये घोजे तो बाहुबलसे ही प्राप्त की जाती हैं । मिस राज्यके लिए पुत्र पिताको, भाई 'भाईको, मित्र मित्रको मार डालते हैं, क्या वह राज्य विना रण में शस्त्रप्रहार किए यों ही सहज शिक्षा मांगने ले मिल सकता है ? क्या तूने नहीं सुना कि भरत चक्रवर्तीने राज्य ही के लिये तो अपने भाई वाहअलि पर चक्र चलाया था । 'विभीषणने गवण को मरवाया था. कौरवों और पांडवों में
महामारत हुआ था. सो राज्य क्या, मैं यों ही दे सकता हूं? - नहों, काति महीं । यदि श्रीपालमें बल है ना रण मैदानमें आकर ले लेवे ?'
यह सून कर वह दून फिर विनय सहित बोला हे राजन् ! ऐसी हट करने से कुछ लाभ नहीं है। श्रीपाल बडा पुरुषार्थी वीर कोटीभट्ट और बहुत राजाओंका मुकुटमणि महामंडलेश्वर राजा है । उसके साथ बडे२ राजा हैं, अपार दलबल है, आपको उससे मिलने ही में कुशल हैं। यदि बार उससे मिलेगे तो वह न्यायी है, आपको पिताके तुल्य हो मानेगा, अन्यथा आप बड़ी हानि उठायगे।' दूनके ऐसे बचनों से • बीरदमनको क्रोध आ गया। वे लालर आंखें दिखाकर बोले
रे अधम ! तुझे लज्जा नहीं। मेरे सामने हो विदाई करता जा रहा है। तू अभो मेरे बलको नहीं जानता है। मेरे सामने इन्द्र, चन्द्र नरेन्द्र, खगेन्द्र आदिको भो कुछ सामथ्र्य नहीं है। फिर श्रोपाल तो मेरे आगे लडका ही है। उससे युद्ध हो क्या करना है ? बात की बात में उसका मान हरण करूगा ।