Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 8
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 8
________________ पृष्ठ पृष्ठ .... १ विषय हेतुत्व चरमकारणत्वरूप होने से व्यभिचार निरबकाश १३२ 'वस्स्वन्तर' शब्द से असम्भावनादि के ग्रहण पर सिद्ध साधन .... १३२ महाविद्या के अनुमान में दोष-उत्तरपक्ष विशेषणभेद करने पर अतिप्रसंग तुलाज्ञानविशिष्ट चतन्यविषयक अज्ञान की असिद्धि .... तुलाज्ञान साधक अनुमान में हेतु-असिद्धि १३४ हेतु अप्रसिद्धि की आपत्ति .... दृष्टान्त में साध्यासिद्धि दोष .... जीव-ईश्वरादि के विभाग की अनुपति आपत्ति और अनुपपत्ति के बचाव की आशंका .... .... अरूपी वस्तु प्रतिविम्ब का असंभव द्वित्वरूप प्रतिबिम्बोत्पत्ति का भयोग उपाधिभेद से जीव-ईश्वर विभाग की अनुपपत्ति १३८ वास्तव-अवास्तब की प्रमाणशून्य कल्पना अनुचित 'तस्याभिध्यानाद्' श्रुति का विशिष्टार्थ १३९ प्रपंचमिथ्यात्वसाधक अनुमान की दुर्बलता १४० अनुमान से प्रत्यक्षबाध न होने की शंका का निराकरण .... .... १४० दृश्यत्य हेतु में दोषपरम्परा .... का ८ अद्वैतवाद ब्रह्म का उपदेश समभाव की सिद्धि के लिये .... १४२ ईश्वरवेशवादी नैयायिक मत की अशोभा १४३ का० ६ समभाव सिद्धि का विषय अबाधित है .... .... का० १० विपक्ष आशय में बाधोपस्थिति १४४ अद्वैतवाद में यम-नियमादि की व्यर्थता १४४ अविद्यानिवृत्ति के लिये मोक्षार्थी का प्रयत्न अयुक्त .... विषय अविद्यानिवृत्ति अनिर्वचनीय नहीं हो सकती तत्त्वज्ञोपलक्षित चैतन्य अविद्यानिवृत्तिरूप कैसे? .... .. अज्ञान निवृत्ति अज्ञानात्यन्ताभावरूप है-पूर्वपक्ष ..., १४८ मुक्त से पुरुषार्थत्व को हानि नहीं है वेदान्ती का समूचा निर्माण भ्रान्तिमूलक है १४८ प्रश्नद्वय के उत्तर में समाधि की प्रक्रिया १४६ समाधिद्वय में विलक्षणता की असिद्धि १५० आमनिवास बार पुनः भ्रमोदय प्रचत्ति की उपहास्यता-उत्तरपक्ष १५१ वेदान्तमत में मोक्ष-पुरुषार्थ की अनुपपत्ति .... .... १५२ सालोक्यादि चार भेद से क्रममुक्तियाँ १५३ भज्ञानात्यन्ताभावबोध का क्या स्वरूप है ? १५३ लय की व्याख्या वेदान्ती के लिये दुःशक्य १५३ लय कारणक्रम से निवृत्तिरूप नहीं है १५४ मुक्ति में प्रपंच की सुक्ष्म रूप से सत्ता की आपत्ति .... देदान्ती को जनमत में प्रवेशापत्ति १५५ ज्ञान-सुखादि आत्मा के धर्म हैं १५५ ब्रह्म में संसार की आपत्ति १५६ प्रागभाब और ध्वंस का अपलाप अशक्य १.६ ब्रह्मात्यन्ताभाव न होने की शंका का उत्तर १५७ शून्यवाद की आपत्ति मात्र वेदान्त वाक्यों का श्रवण अनुपयुक्त १६२ अनेकान्तवाद में दोषाभाव .... स्वरूप-पररूप से सत्त्वासत्व .... १६७ अन्तिम वक्तव्य * समाप्त*

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