Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 8
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 140
________________ १३० [ शास्त्रवार्त्ता० त०८ दलो०७ पर यह दोष नहीं हो सकता, क्योंकि 'वस्त्वन्तर' शब्द का अर्थ है वस्तुभिन्न वस्तुसदृश । प्रकृत में वस्तु है प्रमाणज्ञान । वह होता है ब्रह्मज्ञानेतराबाध्य । श्रत एव उससे भिन्न ब्रह्मज्ञानेतराइबाध्यत्लेन तत्सदृश ही इस्त्वन्तर शब्द का पर्यवसित अर्थ होता है ब्रह्मज्ञानेतराबाध्य । मिथ्याज्ञान अधिष्ठानज्ञान से बाध्य होने के कारण ब्रह्मज्ञानेतराबाध्य नहीं होता । अतः 'वस्त्वन्तर' शब्द से उसका परिहार हो सकता है। [ 'अप्रकाशित' विशेषण की सार्थकता ] हेतुदल में 'अप्रकाशितत्व' विशेषण न देने पर धारावाहिक ज्ञानस्थल में द्वितीयादि विज्ञान में हेतु में साध्य का व्यभिचार हो जायगा । श्रतः उसका वारण करने के लिये उक्त विशेषण का उपादान किया गया है। यदि यह शंका की जाय कि ' धारावाहिकज्ञान स्थलीय द्वितीयाविज्ञान भी जिस अर्थ का प्रकाशक होता है वह पूर्वज्ञान के पहले अप्रकाशित रहता है अत एव अप्रकाशितत्वघटित हेतु में भी उक्त ज्ञान से साध्य का व्यभिचार होगा' - तो इसका उत्तर यह है कि- 'अप्रकाशितार्थप्रकाश' शब्द से स्वविषयावरणनिवृत्तिरूप व्यवहार विवक्षित है । धारावाहिकज्ञानस्थलीय द्वितीयादिज्ञान में स्वविषयावरणनिवृत्ति को कारणता नहीं है क्योंकि उक्त निवृत्ति आद्यज्ञान का ही कार्य होती है । अतः उक्त ज्ञान में व्यभिचार नहीं हो सकता । न च हेत्वसिद्धिः साध्योपात्तस्वविषयावरणनिवृत्तेर प्रकाशितार्थव्यवद्दारशब्देनाऽविवचितत्वात् । न च चक्षुरादौ व्यभिचारः, तस्य ज्ञानजननेनान्यथासिद्धत्वात् । नच साधनवैकल्यं दृष्टान्तस्य, स्वविषयावरणान्धकारनिवृत्तिहेतुत्वात् । न च सुखादिज्ञाने व्यभिचारः, तस्य स्वविषयावरणनिवृत्तिहेतुत्वा मावात् । न च स्मृतौं व्यभिचारः, तस्याः स्मृतिप्रागभावरूपस्वविषयावरणनिवर्तकत्वादिति वाच्यम् तस्य स्वविषयावरणत्वाभावात्, तत्सच्चेऽप्यनुभवदशायां तद्विषयस्फुरणात् । 1 [ हेतु असिद्धि की शंका का निवारण ] यदि यह कहा जाय कि - 'उक्त अनुमान से पूर्व प्रमाणज्ञान के विषय का प्रज्ञानात्मक आदरण सिद्ध न होने से स्वविषयावरणनिवृत्तिजनकत्वरूपहेतु प्रसिद्ध है ।" तो यह ठीक नहीं है क्योंकि साध्यकुक्षि में प्रविष्ट स्वविषयावरण की निवृत्ति अप्रकाशितार्थप्रकाशशब्द से विवक्षत नहीं है । अतः मिथ्याज्ञानात्मक श्रावरण को लेकर पक्ष में 'स्वविषयावर निवृतिजनकत्व' गृहोत हो सकता है। यदि यह शंका की जाय कि - 'साध्यकुक्षि में 'स्वविषयावरण' शब्द से मिथ्याज्ञान अथवा चाक्षुषप्रागभाव को लेकर स्वविषयावरण निवृत्तिजनकत्वरूप हेतु चक्षु आदि में भी है किन्तु उसमें उक्त अन्य वस्तु पूर्वकत्वरूप साध्य नहीं है, अत: चक्षु आदि अर्थ में उक्त साध्य का व्यभिचार होगा"तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि चक्षु आदि प्रज्ञान को उत्पन्न कर चरितार्थ हो जाने से अर्थावरण की निवृत्ति के प्रति अन्यथासिद्ध हो जाता है । अतः उसमें स्वविषयाचरणनिवृत्तिजनकत्व न रहने से व्यभिचार नहीं हो सकता । [ दृष्टान्त में हेतु असिद्धि शंका का निवारण ] यदि यह शंका की जाय कि - 'चक्षु आदि में व्यभिचार का वारण करने के लिये यदि उक्त

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