Book Title: Shaktivadadarsha
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

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Page 6
________________ मथ शुद्धिपत्रम् गंगा २५ ४८१ - ४८ ४८ शुद्धम् गङ्गा ताच्छेद तावच्छेद तदशे तदेशे संधन्धेन संबन्धेन धर्मिता धर्मिता सबन्ध संबध घटरवे निरूप . निरूपित सयवाये घमवाये रिजि परिजि त्व वत्व संसगरवे संसर्गत्वे स्वं सर्वपदम् (स्वं सर्वपदम) भाग भाग नप नुप घटेरवे ४८ ४८ १२८ १३६ एतदिशा स्वयं शोध्यमशुद्धं यदि दृश्यते । अवश्यं शिष्यवेऽशुद्धिः सूक्ष्मदृष्टयापि दर्शने ॥

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