Book Title: Shabdamala
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Shantijin Aradhak Mandal

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Page 369
________________ अभिधानचिन्तामणिनाममाला • ३३८ शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ समय पुं १५०९ अवसर, प्रसंग समया स्त्री १५३४ समीप, पासे समर पुं न. ७१६ युद्ध, लडाई समरोचित पुं १२२२ लडाईने योग्य हाथी . समर्थ पुं ४९१ (शे. १०८) सहनशील, बलवान आलिंगनादिथी सुख उपजाववुं ते समर्थन न. १३७४ योग्य अग्योनी परीक्षा, साबित कर शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ सब्रह्मचारिन् पुं ८० समान आगम व्रत अने आचारवाळा (शिष्यो) सभा स्त्री ४८१ सभा सभा स्त्री ९९० घर सभाजन न. ७३१ मित्र वगेरेने सभासद् पुं ४८० सभ्य, सभाजन सभास्तार पुं ४८० सभ्य, सभाजन समिक पुं ४८५ जुगारी सभ्य पुं ३७९ सारो माणस सभ्य पुं ४८० सभाजन सम न. १४३३ समस्त, बधुं समत्रि १४६१ तुल्य, समान, सरखुं समग्र न. १४३३ समस्त, बधुं समज पुं १४१४ पशुओनो समूह समज्या स्त्री ४८१ सभा समास न. ७४२ न्याय, लायक 'समधिक' पुं १४४९ अधिक समन्ततस् अ. १५२९ चारे बाजु, सर्व तरफ समन्तभद्र पुं २३४ सुगत, बुद्ध समन्तभुज् पुं ११०० (शे. १६९) अग्नि समन्तात् अ. १५२९ चारे बाजु समपाद न. ७७७ बंने पग सरखा राखी ऊभा रहेवुं ते (युद्धमां) समम् अ. १५२७ साथे समय पुं न. १२६ काळ, वखत समय पुं २४२ आगम, सिद्धांत समर्धक पुं ४८० वरदान आपनार समर्धुका स्त्री ५४२ (शे. ११५) पुत्री समर्पण न. १५१९ (शि. १३७) अतिशय दान आप ते समर्याद न. १४५१ समीप, पासे समवकार पुं २८४ नाट्यप्रबंधनो एक प्रकार समवभ्रंश पुं ५१८ (शे. १११ ) करमोचन, विवाह प्रसंगनी एक किया समवर्तिन् पुं १८४ यम, जमराजा समवाय पुं २४३ बार अंग पैकी चोथुं अंगसूत्र समवाय पुं १४१२ समूह, समुदाय समसुप्ति स्त्री १६१ प्रलयकाळ समस्त न. १४३३ समस्त, बधुं समस्थली स्त्री ९४९ प्रयागथी हरिद्वार सुधी गंगा अने यमुनानो वचलो प्रदेश समा स्त्री (ब.व.) १५९ वरस समांसमीना स्त्री १२७१ दर वर्षे वियाती गाय

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