Book Title: Shabda Sanskar Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ १२ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ सहित संक्षेपमा वर्णन छे.. आ रचनामां मुख्यत्वे शब्दसंग्रह ज ध्यानार्ह तथा अभ्यासार्ह छे. कारण के, शब्दसंग्रहमां एवा केटलाये शब्दो छ जे उक्तिरत्नाकर के अन्य रचनाओमां प्राप्त थता नथी. वळी, केटलाय देश्यशब्दो अथवा समसंस्कृत शब्दोना संस्कृत प्रतिरूप आपतां रचनाकारे साथे साथे ते ज शब्दनो बीजो संस्कृत पर्याय शब्द पण मूकेल छे जे अन्य रचनाओमां भाग्ये ज जोवा मळे छे. आ रीते, आ ग्रन्थ केटलाय शब्दोनां मूळ अने कुळ शोधवामां उपयोगी बनी रहे छे, अने मध्यकालीन कृतिओना वाचको-अभ्यासकोने माटे पण आ ग्रन्थ घणो ज उपयोगी अने लघु शब्दकोशनी गरज सारे तेवो छे. प्रतिपरिचय - उगतीयशब्दसंस्कारनी आ प्रतिनी झेरोक्ष कोपी मारा पू. गुरुभगवंतना संग्रहमांथी प्राप्त थई छे. मूळ प्रति प्रायः भावनगरनी ग्रन्थभण्डारनी होवानो सम्भव छे. प्रतिनां कुल पत्रो अग्यार (११) छे. प्रत्येक पत्रनुं माप १०.४" x ४.५" छे. प्रत्येक पत्रमा कुल १२ पंक्तिओ छे, छेल्ला पत्रमा ४ पंक्तिओ छे. अक्षरो सुवाच्य-मोटां छे. अशुद्धिओ पार विनानी छे. मोटा भागे शब्दो लखवामां अन्य रचनाओ तथा शब्दकोशोनो सहारो लेवो पड्यो छे, अथवा अनुमानथी शब्दो लख्या छे. __ आ प्रतिना लेखक - जे प्रायः रचनाकार पण होय - ऋषि रूपा नामे कोई मुनिभगवंत छे अने तेमणे साधवी सवीरां नामे साध्वीजीना पठनार्थे आ रचना लखी छे, तेवू ग्रन्थ प्रान्ते आपेल पुष्पिकाथी जणाय छे. आ लेखक/ रचनाकार तथा लेखनकाळ विशे कोई माहिती मळती नथी. लेखनशैली तथा प्रतिनां कद-माप अने शब्दोनी पसंदगी जोतां आ प्रति सत्तरमा सैकामां लखाई होय तेवू अटकळी शकाय छे.Page Navigation
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