Book Title: Shabda Sanskar
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 26
________________ डिसेम्बर २०१० ३५ जाणी - ज्ञात्वा चीती - चिन्तयित्वा चोरी - चोरयित्वा करी - कृत्वा, विधाय उठी - उत्थाय ढाकी - पिधाय पइसी - प्रविश्य पामी - प्राप्य आवी - आगत्य सांभली - श्रुत्वा, आकर्ण्य उसरी - उत्सार्य आदरी - आदृत्य माडी - प्रारभ्य मोकली - प्रस्थाप्य तेडी - आकार्य वारी - निवार्य विहरी - विहृत्य पहिरी - परिधाय जोई - विलोक्य आपी - समर्प्य विमासी - विमृश्य वखाणी - व्याख्याय पाछु वली - व्याघुट्य परसीजतुं - परिसिज्यमान खीजतुं - क्षीयमाण गायतुं - गीयमान खायतुं - खाद्यमान दीसतुं - दृश्यमान संभारीतु - श्रूयमाण बोल(ला)तुं - उच्यमान करावितु - कार्यमान उठाडीतु - उत्थाप्यमान रहावतु - स्थाप्यमान मोकलीतु - प्रेष्यमाण जमाडीतु - भोज्यमान आणीतु - आनीयमान उपाडीतु - उत्पाट्यमान ---------------- करिवा - कर्ता (कर्तुम्) लेवा - ग्रहीतुम् देवा - दातुम् पीवा - पातुम् संभलिवा - श्रोतुम् जोवा - द्रष्टुम् जिमवा - भोक्तुम् बोलवा - वक्तुम् बइसवा - उपवेष्टुम् रहिवा - स्थातुम् जाइवा - गन्तुम् आणिवा - आनेतुम् कराविवा - कारयितुम् कीजतो - कीर्य(क्रिय)माण दीयतुं - दीयमान पीजतुं - पीयमान लीजतुं - गृह्यमान

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