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अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
उगतीयं (उक्तीय / औक्तिक) शब्द संस्कारः
सं. मुनिकल्याणकीर्तिविजय
भूमिका*
आ ग्रन्थमां ग्रन्थकारना काळमां प्रचलित देशीभाषाना, देश्यस्वरूपवाळा शब्दोनां संस्कृत - प्रतिरूपोनुं संकलन करवामां आव्युं छे. समग्र भारतवर्षमां साहित्य माटेनी सार्वदेशिकी तथा सार्वकालिकी भाषा प्रधानपणे संस्कृत ज गणाय छे. भारतीय वाङ्मयनो आदि युगथी आज सुधीनो इतिहास तपासीए तो जणाय के तेमां संस्कृतभाषानी ज मुख्यता अने प्रतिष्ठा सर्वदा स्थिर रही छे. जो के, वच्चे वच्चे संस्कृतभाषाना निरन्तर प्रवाहनी साथे साथे ज, तेमांथी ज उत्पन्न थयेल अने तेना ज सहकारथी उज्जीवित एवी घणी प्राकृत भाषाओ प्रादुर्भाव पामी. जेमके - मागधी, शौरसेनी, पैशाची, महाराष्ट्री व. कालान्तरे आ प्राकृत भाषाओमांथी ज रूपान्तर पामी ते ते देशनी अपभ्रंश भाषाओ जन्मी, के जेने वैयाकरणोए देश्य - भाषा तरीके ओळखावी.
वर्तमान भारतना समग्र उत्तरापथनी जे जे प्रादेशिक भाषाओ आजे छे हिन्दी, बंगाळी, मराठी, पंजाबी, सिन्धी, राजस्थानी ( - गुजराती, मारवाडी, मालवी) ते बधी आ अपभ्रंश अथवा देश्य - भाषामांथी ज विकास पामी आजे बोलाता नूतन स्वरूपने पामी छे. आ भाषाओमां मूळ तो सेंकडो संस्कृत शब्दो ज भिन्न भिन्न देश अने जातिना लोकोना परस्पर संपर्कने कारणे तथा उच्चारणभेद अने व्यवहारभेदना कारणे जुदा स्वरूपवाळा थई गया छे. तेमां पण विशेषे तो जे शब्दोमां संयुक्ताक्षरो वधारे होय तेवा शब्दोमां प्राकृत - अपभ्रष्ट फेरफारो अधिकपणे जोवा मळे छे. जेमके - संस्कृतनुं संखय, सक्कय, संगड व.; प्राकृतनुं पागय, पाइय, पायड व०; सदृशनुं - सरिक्ख - सरिखुंसरखुं व.; उपाध्यायनुं उवज्झाय-ओज्झाय-ओझा - झा / वझे व.
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★ पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजय सम्पादित - राजस्थान पुरातन ग्रन्थमालामां प्रकाशितसाधुसुन्दरगणिविरचित 'उक्तिरत्नाकर'नी प्रस्तावनामांथी संकलित ।
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संस्कृत शब्दोना प्राकृत-अपभ्रष्ट रूपो बनाववानी / बनवानी प्रक्रिया प्राकृत-अपभ्रंश व्याकरणोमां सविस्तर वर्णववामां आवी छे. संस्कृत-प्राकृतभाषासाहित्यना विशिष्ट अभ्यासीओ तो आ व्याकरणोनो अभ्यास करीने उक्त प्रक्रियाने जाणी-समजी शके छे. परन्तु, जे लोकोने सामान्यथी ज देश्यभाषा अने संस्कृतभाषानुं साम्य/वैषम्य जाणवू होय, तथा जे देश्यशब्द लोकबोलीना कारणे मूळ संस्कृतरूप करता जुदो थई गयो होय तेनुं संस्कृत प्रतिरूप शुं होई शके ते जाणवू होय, तेमने संक्षेपमां ज बोध कराववा माटे पूर्वकालीन विद्वानोए आ औक्तिकसंज्ञावाळा ग्रन्थोनी रचना करी छे.
आ ग्रन्थोमां अद्यावधि उपलब्ध प्राचीनतम ग्रन्थ छे बनारसना दामोदर पंडित विरचित उक्ति-व्यक्तिप्रकरण (सिंघी जैन ग्रन्थमालामां प्रकाशित). तेनी रचना विक्रमनी १२मी सदीना अन्तभागमां थई होय तेवू संभवे छे. आ ग्रन्थमां, ते काळे बनारस-जनपदमां प्रचलित देश्यभाषानो व्याकरणनी दृष्टिए संस्कृतभाषा साथे केवो सम्बन्ध छे - अने देश्यशब्दोने संस्कार करवाथी संस्कृतनुं शुद्धरूप कई रीते बने छे ते विस्तारपूर्वक वर्णववामां आव्युं छे. तत्कालीन लोकभाषानी लोकरूढ उक्तिओ अने शब्दप्रयोगो द्वारा संस्कृत व्याकरण- आधारभूत स्थूलज्ञान सहेलाईथी मेळवी शकाय छे, तेवू दामोदर पण्डित आ ग्रन्थमां सविस्तर प्रतिपादन करे छे.
आ ग्रन्थ पछी पण आ ज विषयना अने आवी ज शैलीमां रचायेला घणा नाना-मोटा ग्रन्थो अनेक ज्ञानभण्डारोमां प्राप्त थाय छे. एमांथी अद्यावधि उक्तिरत्नाकर, उक्तीयक, औक्तिकपदानि, मुग्धावबोध-औक्तिक (कुलमण्डनसूरिविरचित) व. पुरातन रचनाओ प्रकाशित थयेल छे.
ते ज क्रममां आ उगतीय (उक्तीय) शब्दसंस्कार नामनो ग्रन्थ पण आजे अनुसन्धानना माध्यमथी प्रकाशित थई रह्यो छे. आ ग्रन्थमा प्रारम्भे (नव पत्रो सुधी) शब्दसंग्रह आपवामां आव्यो छे. ते पछी कृदन्तसाधित शब्दोमां कर्मणि भूतकृदन्त, कर्तरि वर्तमानकृदन्त, सम्बन्धक भूतकृदन्त, कर्मणि वर्तमानकृदन्त, हेत्वर्थ कृदन्त - आ क्रमे संग्रह करवामां आव्यो छे. ते पछी इच्छादर्शक (सन्नन्त) कृदन्तो, आज्ञार्थक क्रियापदो, अकर्मक धातुओ, द्विकर्मक धातुओ, वीस उपसर्गो व. नो संग्रह छे. अन्ते छए कारको, भेद तथा उदाहरण
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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
सहित संक्षेपमा वर्णन छे..
आ रचनामां मुख्यत्वे शब्दसंग्रह ज ध्यानार्ह तथा अभ्यासार्ह छे. कारण के, शब्दसंग्रहमां एवा केटलाये शब्दो छ जे उक्तिरत्नाकर के अन्य रचनाओमां प्राप्त थता नथी. वळी, केटलाय देश्यशब्दो अथवा समसंस्कृत शब्दोना संस्कृत प्रतिरूप आपतां रचनाकारे साथे साथे ते ज शब्दनो बीजो संस्कृत पर्याय शब्द पण मूकेल छे जे अन्य रचनाओमां भाग्ये ज जोवा मळे छे. आ रीते, आ ग्रन्थ केटलाय शब्दोनां मूळ अने कुळ शोधवामां उपयोगी बनी रहे छे, अने मध्यकालीन कृतिओना वाचको-अभ्यासकोने माटे पण आ ग्रन्थ घणो ज उपयोगी अने लघु शब्दकोशनी गरज सारे तेवो छे. प्रतिपरिचय -
उगतीयशब्दसंस्कारनी आ प्रतिनी झेरोक्ष कोपी मारा पू. गुरुभगवंतना संग्रहमांथी प्राप्त थई छे. मूळ प्रति प्रायः भावनगरनी ग्रन्थभण्डारनी होवानो सम्भव छे. प्रतिनां कुल पत्रो अग्यार (११) छे. प्रत्येक पत्रनुं माप १०.४" x ४.५" छे. प्रत्येक पत्रमा कुल १२ पंक्तिओ छे, छेल्ला पत्रमा ४ पंक्तिओ छे. अक्षरो सुवाच्य-मोटां छे. अशुद्धिओ पार विनानी छे. मोटा भागे शब्दो लखवामां अन्य रचनाओ तथा शब्दकोशोनो सहारो लेवो पड्यो छे, अथवा अनुमानथी शब्दो लख्या छे.
__ आ प्रतिना लेखक - जे प्रायः रचनाकार पण होय - ऋषि रूपा नामे कोई मुनिभगवंत छे अने तेमणे साधवी सवीरां नामे साध्वीजीना पठनार्थे आ रचना लखी छे, तेवू ग्रन्थ प्रान्ते आपेल पुष्पिकाथी जणाय छे. आ लेखक/ रचनाकार तथा लेखनकाळ विशे कोई माहिती मळती नथी. लेखनशैली तथा प्रतिनां कद-माप अने शब्दोनी पसंदगी जोतां आ प्रति सत्तरमा सैकामां लखाई होय तेवू अटकळी शकाय छे.
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श्रीउगतीयंशब्दसंस्कार ए ६० ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ अर्हम् ॥
आज - अद्य
अन्यम - अन्यथा काल्हि - कले(ल्ये)
एकवार - एककृत्व[:] परम - परेद्यवि
बिवार - द्विकृत्व[:] अरीरम - अपरेछु
त्रिणिवार - त्रिणिकृत्य(त्रिकृत्वः) आजूनी - अद्यतनी
च्यारिवार - चतु[:] कृत्व[:] काल्हूनी - कल्यतनी
पंचवार - पञ्चकृत्व[:] परमूनी - परमदिवसीया
सुवार - शतकृत्व[:] हिवडानी - आधुनकी (आधुनिकी) एवं वार शतकृत्वस (?) साम्प्रतनी
(वारस्य संख्यायां कृत्वस्) हिवडां - आ(अ)धुना
एकपरि - एकधा सांप्रति - साम्प्रतम्
बिडं परि - द्विधा, द्वैधा, द्वैधं नही तु - नो वा / नो चेत् त्रिहुं परि - त्रिधा, त्रैधा, त्रैधं लगइ - प्रभृति, आरभ्य
चिहुं परि - चतुर्धा पाखइ - विना, ऋते
सइं परि - शतधा मुहिया - मुधा
घणी परि - बहुधा यम - यथा
किहां - क्व, कुतः(त्र), कस्मिन् स्थाने तिम - तथा
जिहां - यत्र, यस्मिन् स्थाने किम - [क]थं
तिहां - तत्र, तस्मिन् स्थाने इणि परि, इम - इत्थं
अनेथ - अन्यत(त्र) जईयं - यदा
सगलइ - सर्वत्र तहियं - तदा
तिमइ - तत्कालम् कहीइ - कदा
झटकइ - झट(टि)ति एकवार - एकदा
वहिलं - शीघ्रम् अनेकवार - अनेकदा
उतावलुं - त्वरितम् सदा - सर्वदा, निरन्तरम्
जुउ - प्रथुक् (पृथक्)
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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
एकठउ - एकत्र ताहरुं - त्वदीयम् माहरूं - मदीयम् तम्हारुं - युष्मदीयम्, भवदीउं(यम्) अम्हारुं - अस्मदीयम् एहनुं - एतदीयम् किहां- - कुत्रत्यम् इहानुं - अत्रत्यम् तिहांनुं - तत्रत्यम् जां - यावत् तां - तावत् येतो - यावन्मात्र तेतलुं - तावन्मात्र ए[त]लउं - एतावन्मात्र एतलुं - इयत् केतलुं - की(कि)यत् जु - यदि तु - ततः जं - यत् तं - तत् जइ किमई - यदि, कथमपि चेत् इसिउं - इति, ईदृशम् हा - एवम् इम ज - एवमेव हिव - अथ हिवडां पूठि - अतः परम् हाथलस (हावलि ?) - प्रत्युत पूठई - अनु पाछई - पश्चात्
साम्हउं - अभिमुख, सन्मुख उपराठउं - पराङ्मुख जमणउ - दक्षिण डावु - वाम, सव्य पाधरु - ऋजु, सरल वांकु - कुट(टि)ल उपरि - उपरिष्टात् हेठि - अधः उपहरु - ऊर्ध्व आडउ - तिर्यग् तरछु - तिरछ (तिरश्चीन ?) आगलि - अग्रे, पुरस्तात् आगलु - अग्रेसर पाछलु - पश्चात् सरीखं - सदृक्, समान सरीखी - सदृशी, सदृष्या (शा) किसी - कीदृग्, कीदृशी, कीदृशा अनेसी - अन्यादृशी, अन्यादृग,
____ अन्यादृशा
तिसी - तादृक्, तादृशी, तादृशा जिसी - यादृग्, यादृशी, यादृशा तु-सरीखी - ता(त्वा)दृक्, त्वादृशी,
त्वादृशा मु-सरीखी – मादृक्, मादृशी, मादृशा अम्ह-सरीखी - अस्मादृक्, अस्मादृशी,
अस्मादृशा तुम्ह-सरीखी - युष्मादृक्, युष्मादृशी,
युष्मादृशा उरहउ - आर्वक् (अर्वाक्)
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परहउ - पराक्, परतः
विल - विलक्ष सविहुं-गमा - समन्तात्, विष्वग्, द्रहद्रहवेला - जइ(य)द्रथवेला समन्ततः
सांझ - सन्ध्या, सायम् ऊगुमूगउ - अवाग्(मूकः
बहवररात्रि - मध्यमरात्रि झलझाखसुं - झलब्भाष्यं
नसीथविहाणुं - विभाति प्रत्यूषम् (चलद्ध्वाङ्क्षम्) घडी - घटिका, नाडिका म(मु)हम(मु)हसीझणउं - मुख- पुहर - प्रहर, याम
मुखेष(क्षणम्)
सवार - सवेला उ(ऊ)धांधलूं - ऊर्ध्वधूलकं
असूरं - असूरम् (उद्धूलिकम्)
चुघडीउं - चतुर्घटिकम् सूगामणूं - सूकाजनकम्
आधु - अर्ध षीषइनही - क्षेम-क्षतिर्न हि आपणुं - आत्मीय, स्वकीयम् |
पूरु - पूर्ण पराउं - परकीय
अधूरुं - अर्धपूर्ण अनेरानुं - अन्यदीय, अन्यसत्क
दुढउं - सार्ध देवनुं - देवसत्कि(त्क)
अढाई - अर्धतृतीय गुरु- - गुरुसत्क
अहूठउं - अर्धचतुर्थ जे पुण्य - यदि एति
साढापंच - सार्धपञ्च, पञ्चन(पञ्चोन) अजी - अद्याऽपि
बइ - द्वि तउइ - तथाऽपि
तीणि - त्रि उइहण - ऐषम
च्यारि - चत्वारि पुर - पुरतः, परारि
पंच - पंचन् पढू - प्रतिभू
छ - षट पढूचुं - प्रतिभाव्यम्
सात - सप्तन् ऊपरीयामणुं - उत्कि(त्क)लिकाकुलम् आठ - अष्टन् कोडि- कौतुक
नव - नवन् उल्यउं - अर्वाचीनम्
दस - दशन् पइलू - पराचीनम्
एकादस - एकादशन्
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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
[द्वादस] - द्वादशन्, त्रयोदशन्, N चतुर्दशन्, पञ्चदशन्,
षोडशन्, सप्तदशन् [अठारस] अष्टादशन् एगुणीस - एकोनविंशति वीस - विंशति एगुणत्रीस - एकोनत्रिंशत् त्रीस - त्रिंशत् एगुणचाली - एकोनचत्वारिंशत् च्यालीस - चत्वारिंशत् पंचास - पञ्चाशत् साठि - षष्ठि सत्तरि - सप्ततिः असी - अशीतिः नेऊ - नवतिः सु - शति (शत) बीजु - द्वितीय त्रीजु - तृतीय चुथु - चतुर्थ पाचमु - पञ्चम छठउ - षष्ट सातमु - सप्तम आठमु - अष्टम नवमु - नवम दशमु - दशम इग्यारमु - एकादशम इत्यादि उरइ-परइ - इतस्ततः भावइतिहां (?) - यतस्ततः
किहांनु - कुतः, कस्मात् कांइ - किम् । वली - पुनः पणि - परम् मुडई मुडई - मन्दं मन्दम्,
शनी शनी (शनैः शनैः) गाढइं - गाढम् लांबु - प्रलम्ब, दीर्घ टुंकु - तुच्छ, ह्रस्व मोटउ - महान् जाडउ - स्थूल, उपचित, प्रत्यन(ल?) दुबलु - दुर्बल, कृश सोभागीउ – सौभाग्यवान् रलियामणुं - रतिजनकम् उदेगामणुं - उद्वेगजनकम् अबाडूउ - प्रतिकूल सवाडूउ - सानुकूल डाहउ - दक्ष भोलु - मुग्ध ऊचु - ऊचीस्थर (उच्चस्तरम्) नीचु - नीचीस्थर (नीचैस्तरम्) अधिक - अधिक उछउ - हीन अरत-परत-बापसदृश - आकृत्या
प्रकृत्या [पितृसदृश अग्रेवाण - अग्रानीक पछेवाण - पश्चा[द]नीक चुकीवटु - चतुःकपपट(चतुष्कपट्ट)
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उरस अपघर्ष
रसोई - रसवती
सालणुं - साक (शालनक)
कर्बंउं (करंबउ ?) - कर्भक (करम्बक)
सली शलाका
दोरु
दर्वर कीलक
खीलु
उरु
अपवर्क (अर्वाक् ?)
-
—
-
-
रसोडीउं महानस
पछोकडउ पश्चादु(दो)कस् आंगणुं
बार द्वार
पावडी सोपान
-
चुक - चतुष्क
पटसाल पटशाला
-
अंगण
थाभु
स्तम्भ
कभी - कुम्भिका
भारुट
भारपट्ट
खूणुं – कू(को)णक उदम्बर देहली
अंबर
भउइरुं – भूमिगृह नीसरणी नि[:]श्रेणिका
-
पाटी पाटिका
पोथी
पुस्तिका टीपणुं टिप्पनक
चुगठि - चतु[:] काष्टिका
वींटणुं – वेष्टनक
पूठीदनुं (पूठी अठं?) पृष्ठिपत्रम् पानुं – पत्रम्
काणुं
माहि
किमाड छोह - सुधा
वेगलुं
दूरतर
दूक आसन (न्न),
भीतर
अभ्यन्तर
वाट
सेरी
-
बाहिरलुं
अंगत
—
छिद्रम्
मध्य, अन्तर
भीति, भय कपाट
-
—
—
-
वर्तमाना
रथ्या
-
-
-
परिग्रह
फलहउं आगली अर्गला
कुंची कुञ्चिका कठासनं - काष्ठासनम्
उढणउं
आच्छादनम्
बाहय्या (बाह्य ?)
अङ्गगत
वासइं उत्तरीय
पहिरण प्रधानवस्त्रम् पास्थ(थ)रणं
प्रस्तरणम्
आडण अङ्गमण्डण(न)
मूलिउं - मूलवेष्टन
पछेडी
पटी
साडी
शाटिका
-
-
समीपस्थ
मउड
राखडी
टीलुं
काठलुं - ग्रीवक
बहिरखु – बाहुरक्ष
मुग (कु) ट
रक्षा
तिलक, पुहि (पुण्ड्र ?)
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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
केऊर - [केयूर] मूदडी - मुद्रिका कडिदोरु - कटिदर्व(वर)क काडलं - कटकम् कांकण - कङ्कण, वलय नेऊर - नूपुर खासडउं - उपानह पग - पद, अंहि अंगूठु - अङ्गुष्ट आंगुली - अङ्गली लीह - रेखा गोडउ - जानु जंघा - ऊरु बयसका(?) - उ(अ)पान, गुदा फूहडउं - पुरीष मूत्र - मौत्र, प्रस्राव कडि - कटि, श्रे(श्रो)णी डूटि - नाभि पेटि - उदर, जठर पूठि - पृष्ठ हईउं - हृदय, वक्षस् थण - स्तन, कुच खंधु - स्कन्ध, अंस गाबडि - ग्रीवा गलुं - कण्ठ नख - करज हडबटी - चिबुक होठ - ओष्ट, रदच्छद कुंच - कूर्च, श्मश्रु
मुख - वदन, आस्य दात - दशन [जीभ] - जिह्वा, रसना, रसज्ञा तालुं - ताल, काकुद [नाक] - नासिका, नासा गाल- गल्ल, कपोल
आंखि - अक्षि, नेत्र, लोचन कान - कर्ण निलाडि - ललाट माथु - मस्तक, शीर्ष केस - कुंतल रूं - रोमन् हाथ - हस्त, कर बाहु - भुजा चामडी - त्वचा देह - विग्रह, तनु तांगणी - तनुगमनिका रइवाडी - राजपाटिका घोडु - हय, अश्व, तुरंगम हाथी - गज बलद - वृषभ, धौरेय रथ - स(स्य)न्दन, आस्य(श्व) गाडउं - शकट, अनस् वाहण - गन्त्री वहिला - वैत्रवेत्री (वीतवेत्री) पायक - पत्ति, पदाति असवार - अश्ववार पूंतार - आधोरण सागडी - शाकटिका यन्त्रसार्थ
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रामति - क्रीडा
लिपसणुं - लपसावनं (लिप्स्यायनम्) [बकोर] - बर्कर
पटतरुं - प्रत्यन्तर गोई गोसली - गोप्यशलाका डोकरु - डोलत्कर दडउ - कन्दुक
छीडणि - छिद्राटनी पासु - अक्ष, देवकन(देवन) छेकडि - छिद्रकरी जु - यतः
सीराम[[] - शीताशन हीडोलु - दोलन
सुडि - संवृति(तपटी) झीलj - जलकेलि
सीरख - शीत[र]क्षा वटवालणुं - वर्त्मपात्रं(पालनम्) तलाई - तूलिका बहेडउं - द्विघडं(घटकम्) उ(ऊ)सीसुं - उपशीर्ष घरटउ - घरट्ट
सेलावटउं - शिलाव(प)ट अरहिट - अरघट्ट
खाडाइतुं - खंगाइतूं (खड्गवित्त) कूउ - [कूपः]
भथाइतुं - भस्त्रवित्त वावि – वापी
बगाई - जंभाईका (जृम्भिका) खडोखली - दीपिका
गृहली - गोमयफलिका (गोमुखा) तलाव - तटाक, सरस्
कोसीधुं(टुं) - कोषसमृद्धि(द्ध?) नइ - नदी, नम्निका (निम्नगा) जमाई - यामत्रय (जामातृ?) समद्र - अम्भोधि
भाई - भ्रातृ, बन्धु द्र[ह] - हृदः
पिता - पितृ, जनक तीर - तट
माता - मातृ, जननी बूसट - चपेटा
पुत्र - तनय, सुत चुहडी - चंचुप(पु)टिका । पुत्री - तनया, सुता कावडि(जि) - कायमादनी (कायाटनी) फुई - पितृष्वसा गरढउ - गतार्धवयम्
मासी - मातृष्वसा वछीआइत - वस्तुवंत(वित्त) पीतलं - पितृव्य उ(ऊ)सलसीधुं - उश्र(उल्लसित)- माउलु - मातुल सन्धिकम्
भाणेज - भाजे(गिने)यः वेगडउ - विकटशृङ्ग
भत्रीजु - भ्रातृव्य
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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
जाईया - पुत्रवधू, स्नुषा
लवार - वाचाल, वावदूक सासू - सुश्रय (श्वधू)
ऊलषु - उदकोल्लञ्चन ससरु - श्वशुर
पलवटि- पलवर्तिपटी(परिवलितपटी) माय-बाप - मातरपितरौ दोटी - द्विपटी सगा - स्वजन
कोटीलु - कुट्टनक मित्र - वयस्य
निद्रालूउ - निद्रालक्ष फिरक - फर(स्फुरत्)चक्रिका माडही - बलात्कारेण[ण], हठात् प(पा)टूआली - पादप्रहारवती रूडउ - रुचिर, रम्य खाईकण - खादनक्षत्य(खादनपरः) । भलु - भव्य, सुन्दर उ(ऊ)घडदूघडु- उद्घट-दुर्घट भाणुं - भाजन, स्थाल बिवणुं - द्विगुणम्
कचोलुं - चक्षु(ष)क त्रिगुणुं – त्रिगुणम्
पीगाणुं - पीगानन(पिङ्गाणम्?) चुगणुं - चतुर्गुणम्
घडउ - घट, कुम्भ कादमालुं - कर्दमाकुल | गढउं - उदक, गूढ (?) बापडउ - वराक
करवु(उ) - कर्क (करक) वहुरउं - वि(व्य)वहृत
गागरि - गर्गरी पोठीउ - पृष्ठवाह
बेलु - बिवद्रा(?) अरणइं - अरति
कलसु - कलश सोहिलं - सुखावहम्
माटी - मृत्तिका, मृद् दोहिनु - दुःखावहम्
सोनुं - सुवर्ण, कनक, हेम[न्] सूआखें - सुकुमाल, मृदु रूपुं - रजत, रूप्य खरखरूं - कठिन, कठोर त्राबूं - ताम्र घाइसुं - सहसा
सीसुं - सीसक, वङ्ग कबड(कडब) - कडा(णा)बा तरूउं - त्रपु, नाग बलही - बलाहिका
कासुं - कांस्य आहार-जाहार - आगम-निर्गम, एहिरे- लोहडउं - लोह, अयस्
आगर - आकर महासाहणी - महासाधका
खाणि - खानि
-याहिरा
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लूण
खार
संचल
सीधव
वानी वर्णिका
खडी खटिका
हीगलो
हिंगुल
हरीयाल
-
लवण
क्षार
-
-
सौवर्चल
-
मूस - मूषा
साडसु
भाड
धमणि काकरु कर्कर धूलि रजस्
वेलू - वालि (लु) का भूइं – भूमि, भू,
धात्री
पर्वत नग, शिखर,
ट्रंक
शृङ्ग, शिखर
कडण कटक
खेत्र क्षेत्र
वाडि - वर्ति(वृति ?)
क्यारू
द
-
-
सी(सै)न्धव
हरिताल
सन्दंशक
भरना, यवा
धमनिका
ईट
ईटाल
इहटवाह
पाखाण
राई
छाणुं - छा(छ)गण, गोमय
इष्टका
-
लोष्टक
-
भूधर
इष्टकापाक
ग्रावाण, दृषद्
राजका (राजिका)
कादम कर्दम, पङ्क, जम्बाल
स्थाली
उषा (?)
बाधुं - ब (बु)ध्न आयटी
वाहडी
ढाणी
घडाकमंची
आरती आरात्रिका सर्वतोऽवसरः,
-
-
-—
वसइ
परखद समया (सभा)
-
गुख
पोलि
सिंहधार
बलाणुं आखामंडप गंभारुं – गर्भगृह
देउली - देवकुलिका
भमती
भ्रमावर्तिका
धज
ध्वज, पताका
धलुहर
धवलगृह
घर
सद्म, ओकस्
राजहर
राजगृह
सुणहर शून्यगृह पर्व(परव)
प्रपा
गवाक्ष
-
-
स्थानिका बलाद्विष्टाकारकः
--
-
प्रतोली
-
-
सिंहद्वारम्
बलानन
चाचर
गढ
कोसीस
खाई – परिखा
वाडउ
वाटक
दुर्ग,
-
चत्वर
अक्षमण्डपः
सभा
कपिशीर्षक
२१
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________________
२२
अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
पाडउ - पाटक
बर[फ] - जूवटउं - द्यूतावर्त
अवसा, धूअरि - मिहिका भंडार - भाण्डागार
बिंद - विपृष्, जललव कोठार - कोष्ठागार
वाहउ - बाहुप्रवाह घोडाहडि - हयशाला, मन्दुरा नीक - सारणि
हस्त(हस्ति)शाला कलोल - ऊर्मि, तरङ्गा चुतलं, चुरी - चतुरिका
लहरि - लहिरी चतुकाशाला - चतुःशालम्
सेवाल - पनग हाट - हट्ट, आपण
कमल - अम्भोज, सरोज, पद्मिनी पौषधशाला - पौषधागार तुंतु - बिस करणवारीउं - करणशाला मिघबालाह (?) - जीमूत, मेघमाला, उवट्ट - उत्पथ
कादम्बनी मागी - अनुमार्ग
वृष्टि - वर्षण नगर - पुर, पत्तन
आकास - व्योमन्, अन्तरिक्ष नगरी - पुरी
दिशि - दिग्, ककुभ देश – विषय, मण्डल, राष्ट्र पूर्व - प्राची पालि - पल्लि, पछी (?) दक्षण - आराची (अवाची) रान - अरण्य, अटवी
पछिम - प्रतीची थल - स्थल
उरत - उदीची, कौबेरी उपरवाडउं - उत्पथद्वार
आग्नेयी खाड - गर्ता
नैर्ऋती मसाण - स्मशान
वायवी चुवटु - चतुघस्य(चतुष्पथ?)
ऐशानी पाज - पद्या
वाउ - पवन मालु - मालक
वीजणु - तालवृन्त पाणी - पानीय, वारि, अम्भस् आ[ग] - अग्नि, वह्नि, कृशानु हीम - प्रलीयां (?)
धूं (?) - धूमध्वज करा - करक, घनोपल
बाफ - बाष्प
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डिसेम्बर २०१०
फी
शज
झाल
राख
इंधण
मसि
काजल
अधू
द्रिण (रिख)
इ
-
-
--
फेन
शषा (?)
ज्वाला
रक्षा
जाइ
सेव
कणयर
[इन्धन], समिध
मषी, मलिनाम्बु
आम्र, सहकार
लब - निम्ब, पिचुमन्द आबिली चिञ्चा
पीपल
वड
कइर खेजड शमी
बाउल बब्बूल रायण
कज्जल, अंजन
अर्घ्य
1
-
वृक्ष, तरु
पिप्पल, अश्वत्थ
वट, न्यग्रोध
करीर
वणखडउ वनवृष्य
थोहरि - स्नुही, महातरु
कुंआ कुमारी
गलो - गडूची
बलि
बिल्व
बोलि(रि?) बदरी केलि कदली, रम्भा
जाती
राजादनी, प्रियाल
-
शतपत्रिका
कणवीर
वे (वो) ल, वे (व)उल
वेउल
विचकिल
चापुं
ताड
=
पमाड
सेलडी
ज्वार
सालि
चोख
1
पाडल
वांस
काठ
खइर
पीपल
आक
धत्तूरउ धत्तूरक
यवाशक
यवासु द्रो - दूर्वा
चम्पक
ताल
-
-
-
-
पाटल
वंश
काष्ठ
खदिर
-
प्लक्ष
अर्क
प्रपुन्नाट
अक्ष (इक्षु)
जव
यव
गोहू - गोधूम डमंडु ( उडद ? ) - माष
जुगन्ध
शालि
तन्दुल
मग मुद्ग
चिणा - चि (च) णक
तूअरि तुबरी
कुलथ कुलत्थ
काग
कङ्गु, कोद्रव
चपलक
चुला
चुठ (कोठ?)
-
कपित्थ
बकुल
२३
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________________
२४
अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
चीभडउं - चिर्भटक कोठीबडां - कोष्ठभेदकः सूखडी - सुखभक्षिका धाणी - धान्या पुहक - पृथुक बाकुल - बकुल वडां - वटक मांडा - मण्डक पूडा - पपसो (पूपक) कुलीस - कुलिका सूआली - सुखादनी खोजां - खाद्य लाडूउ - मोदक दहीथरां - दधिस्थराः वडी - वटिका पापड - पर्पट बालहुलि - वलफलिका घी - घृत, आज्य दूध - दुग्ध, पयस् माखण - भ्रक्षण, नवनीत भात - भक्त धान - धान्य कूर - अन्धस्य(?), ओदन दालि - सूप खीच - क्षिप्र खीचडी - क्षिप्रचटिका गोली - गुटिका कणक - कणिका
समता (?)
आखे - अक्षत सातू - सक्तु गुल - गुड साकर - शर्करा, सितोपला खांड - खण्ड मधु - धूलि(?) दही - दधि क्षीर - पयस्, परमान्न घोल - कालशेय छासि - तक्र चलू - गण्डूष सीधू - आसव तंबोल - ताम्बूल फोफल - पूग वेलि - वल्ली ड(उ?)रुंगुछ - गुला (?) रायण - राजादन केलां - कदलीफल नालीयर - नालिकेर बीजोरं - बीजपूरक, मातुलिङ्ग द्राख - द्राक्षा, मृद्वीका खारिक - खाद्यारिका टोपलं - टोप्पपर खजूर - खजूर पीलू - पिल (पीलु) सरसवेल - सर्षपतैल अलसेल (अलसिवेल) - अतसीतैल काहरउ (काढउ) - काथ चूनु - चूर्ण
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डिसेम्बर २०१०
चंदूउ - चन्द्रोद्योत, उल्लोच तुंबडउ - अलाबु परीच - यवनिका, तिरस्करिणी हरडइ - हरीतकी, अभया तंगोटी - तंगपटी
सूठि - नागर गूडर (?) - गुप्तापर्वक (?) पीपलि - पिप्पली, कृष्णा (?) साथरा - संस्तर
मिरी - मिरच सेजि - शय्या
राई - राजिका, आसुरी मांचु - मञ्चक, पर्यङ्क
आछण - आनलि खाट - खट्वा
धोयण - धावन आरीसुं - आत्मदृश (आदर्श), दर्पण हलदर - हरिद्रा चूडीउ - भद्रासन
चाकानी - पीता आसण - आसन, विष्टर
खाटू - अम्ल पेढी - पीठका
खारुं - क्षार माची - मञ्चिका, आसन्दी गलिउं - गविल अलतउ - अलतक, यावक मीठु - मिष्ट, मधुर दीवु - दीप; गृहमणि
तीखु - तिक्त दीवटि - दिसा (दीपवतिका ?) कडूउं - कटुक चीनट - स्नेह
कसायखें - कषाय काकसुं - कङ्कतिक
वाटलुं - वर्तुल, वृत्त काकसी - कङ्कतिका
चुरसुं - चतुरस्र वेणी - वेणिका, विरी (?) सांकडउं - सङ्कीर्ण अंबोडउ - धम्मिल्ल
मोकलुं - मोत्कल सिइंथउ - सीमन्थ(न्त)
पटल्हइ (पहुलउ?) - पृथुल, विशाल पली - पलिता
आकरूं - उत्कट चोटली - काकपक्ष
नीचाऊंचुं - निम्नोन्नत नूनसतुख - नखिका
नीलफूलि - पनक आदूं - आर्द्रक, शृङ्गबेर साख - शङ्ख सूरण - अर्शोघ्न
कुडउ - कपर्दी वइगण - वृन्ताक
ईयण - अ(इ)लिका गाजर - गृञ्जन
गाडर - गड्डरी
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२६
पूरुं
-
भमरु
वीछी
माकिउं
जू यूका
माकण मत्कुण घीमेल धृतपिपीलिका
-
कुंथू – कुन्थ माखी
डास दंश
मसा
कोली कौलिक
-
-
भइस
उंट
पूतरक
-
-
-
कीटिका, पिपीलिका
मत्कोटक
-
मक्षिका
मशक
-
साप
भुजङ्गम
गोह - गोधा गिरोली गृहगोधा
काकडउ
कृकलास
-
भ्रमर, षट्पद
वृश्चिक
नुल
उंदर - मूषक डेडक
1
मण्डूक
श्वान श्वन् बिलाडी - मार्जार
छाली- अजा
बोकडु छाग
गाय
नकुल
गो, धेनु
महिषी
उष्ट्र
वाघ
व्याघ्र
चीतउ - चित्रक, द्विपिन्
अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
सीह - सिंह, मृगारि
माछउ मत्स्य
[करहउ ]
साड
गदर्भ
षण्ड
रासभ
सूअर शूकर
ससु
शशक
हरण
सीयाल
-
काछबु – कूर्म सेहलिउ चिडउ
काग
बग बक
समली
1
-
-
गरुड
पंखी
पाख
चाचा
-
मृग
-
-
भरव
देवि - दुर्गा
चाष
-
करभ
शृगाल
जाहक, गात्रसङ्कोची
चार
वायस
चास
पारेवुं - कपोत, पारापत
भैरव
सूअडउ शुक
साहली
सारिका
शकुनिका
-
-
कूकडउ कुक्कुट मोर - मयूर, कलापिन् तीर तिनरा (तित्तिर:)
हंस
मला (मराल) वैनतेय
पक्षी, विहङ्ग
पक्षता
चञ्चु
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डिसेम्बर २०१०
कोइल
कोकिल
पशु, तिर्यग्
नरग
नरक, श्वभ्र
मनुक्ष
मानव
बालक शिशु, शाव
बालपण
शैशव
बाल
तरुण
युवान
-
1
-
वडउ
वृद्ध
खिचर – विहङ्गम
वडपण
वार्धक
सहय
सहृदय
बोलहर
वाक्मान् (वाग्मी ?)
गूगु - मूक बहिरु बधिर
दातार
कृपण मितम्पच
सुजाण
सुज्ञान
अजाण अज्ञान
डहेउं – विदुर वांदणहारु वन्दिर
कहिणारु आशुंसु रूडा बोलु - प्रियंवद
गहिलु ग्रथिल
-
-
-
-
दाता, दानशूर
आपवसू स्वतन्त्र, स्वाधीन
परतंत्र पराधीन
आपछंदउ आत्मच्छन्द महर्धिक लक्ष्मण
दाद्री - दुविध अणाथीउ अकिञ्चन धनिक, प्रभु
धणी
दास
कमारु
वहीतरु
-
सुहड सुभट
कायर
कातर
भीरु
विगृह
दयालू
सूग
1
-
-
-
मारणहार
मारविउं
धूर्त
क्रूर
मायावी मिस
-
-
-
भोजक्ष (भुजिष्य ?)
कर्मकर
भारवाहि(ह)क, भारवैवध
शूक
व्याकुल, विहस्त
दयालू, कृपालु
-
-
-
घातक
व्यापादन
शठ
नृशंस
चाडउ
चोर – चौर,
-
व्याजात् कर्णेप
व्यंसक
पाटच्चर
आलसू - तुन्दपरिमृज
उंजमालु दान वितरण
मागणहारुं - मार्गण, याचक
भीखारी भिक्षाचर
वणीमग
वनीपक
मागवुं – प्रार्थना
हुणहार भविष्य
लजालू
उद्यमवंत (वान्)
२७
अपत्रस्थ(त्रप?)
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________________
२८
रीसाल - ईर्ष्यालु
भूख - बुभुक्षु
भूख
क्षुधा
-
त्रि-पिपासु
त्रिस पिपासा
-
खाणहार
घस्मर
पेटहडी - कुक्षिम्भर सर्वभखी - सर्वान्नीन
लोभीउ – लिप्सु
नीलज
निर्लज्ज
अहंकारी अहंहिउ(अहंयु)
मातु मत्त मोटपेठउ
टाली
-
कुबड
छीमणु, वाम खोडउ
-
-
-
-
-
-
-
तुन्दिल
खल्वाट
कुब्ज
मादउ
रोग व्याधि
छीक
खास
खस
खाज
पोडा
कोढ
हेडकी
खञ्ज
मइलु
काणु काण, एकदृक्, कानतन (?) ढेढ
दांतलु
दातार (दन्तुर ?)
अंधलु
अन्ध, गताक्ष
-
मन्द, ग्लान
क्षुत
कास
कच्छू
वामन
कण्डू
पिग्(पिटक ?)
कुष्ट हिक्का
अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
सोजा
हरसा
छादि
वैद्य
-
-
-
तलार
नावी
सोनार
छीपु
घाची
लोहार
उषध
पडीग्यु
निरालुउं
जो
लेहउ लेखक
आ
-
शोफ
हर्षा(अर्श: ?)
छर्दि
चिकित्सक
भेषज
-
-
-
=
प्रतिकथक (?)
निरालग
संवत्सरक
द्यूतकार
आरक्षक
नापित
स्वर्णकार
रजक
मलिन
अन्त्यज
भील पुलिन्द
चात्रिक (?)
लोहकार
सूत्रहार - सूत्रधार aणकार
-
कुविन्द
बाह्मण वाडव, द्विज, विप्र क्षत्री
क्षत्रिय
वाणीउ वणिक्, वणिज, [गांधी] गन्धिक
भंडारी - भाण्डागारिक
कोठारी - कोष्ठागारिक
महतु
अमात्य
पुरोहित - पुरोधस्
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डिसेम्बर २०१०
राजा - राजन्, भूपाल, पार्थिव लोक - प्रजाजन वटेवाउ - अध्वनीन सइबलु - पाथेय पालु - पादचारण प्राहूणुं - प्राधूर्णक गामड - ग्राम्य नगरीनुं - नागर हासु - हास्य रीस - रोष ऊजम - उद्यम [] - भयभीत बीहामणुं - भयङ्कर परसेवु - प्रस्वेद आसौ - अश्रु लाज - व्रीडा निद्रा - प्रमीला आलस - तन्द्रा दयावणुं - दीन वइराग - वैराग्य वात - वार्ता नाम - नामन्, अभिधान तेडउं - आत्मा(आका)रण सम - शपथ ऊतर - उत्तर पूछ - पृच्छ, पृच्छा असोई - अपश्रुति साचुं - सत्य, तथ्यम् कूडउं - कूट, अलीकम्
पडवडउं - स्फुट-प्रकट नीठर - निष्ठुर लू - रूक्ष गालि - आक्रोश आसिस - आशिका(ए) उलंभु - उपालम्भ रोईq - रुदनम् संदेसु - वाचिक आण - आज्ञा गीत - गेय नाच - नृत्य, लाश(स्य) वाजां - वाजिंत्र(वादित्र) तूर - तूर्य मादल - मृदङ्ग भेर - भेरी ताल - ताला जालर - झल्लरी स्वर्ग - सुरालय देव - निर्जर सूर्य - सहस्रांशु तावडउं - आतप झाझूआ - मृगजल पारीयास - परिवेष चंद्र - विधु अहिनाण - अभिज्ञान चाद्रणुं - चन्द्रातप अज्वाली रात्रि - ज्योत्स्ना रात्रि पडवे - प्रति[पत्] बीज - द्वितीया
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________________
अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
चुथी - चतुर्थी अमावास - अमावास्या पूनम - पूर्णिमा पाखी - पक्षिका चुमासं - चतुर्मासकम् पजूसण - पर्युषणापर्वन् अठाही - अष्टाहिका पाखषमण - पक्षा[न]शन
(पक्षक्षपन?) मासक्षमण - मासक्षम(प)न उपवास - अ(उ?)पोषित, चतुर्थ । आबिल - आचाम्ल निवी - निर्विकृतिक एकासणुं - एकभक्त परमढ - पुरिमार्ध पोरिसि - पौरुषी ब्यासणुं - द्विभक्त नुकारसी - नमस्कारसहितम् पचखाण - प्रत्याख्यान पडिकमणुं - प्रतिक्रमण पडिलेह[ण] - प्रतिलेखन काउसग - कायोत्सर्ग खामणुं - क्षामनक वादणुं - वन्दनकम् खमासमण - क्षमाश्रमण आलोयण - आलोचना सझाय - स्वाध्याय वषाण - व्याख्यान चलोटउ - चोलपट्ट
उघु - रजोहरण, धर्मध्वज महुपती - मुखपोत(ति)का वदना - वादनिका नसेज - निषेद्य पूछणुं - पादप्रोञ्छनक डंडासणुं - दण्डासनकम् पूजणी - प्रमार्जनिका कभली - कपरिका, काम्बली वसा (?) गोछउ - गोच्छक पात्रकेसरी - पात्रकेसरिका पडलं - पटलक रयत्राण - रजस्त्राण तृपणुं - तृपनकम् (तर्पणकम्) कडहटउं - कटाहटकम् मसीजणुं – मषीपात्रम्, मषीभाजनम् लेखण - लेखनी छुरी - छुरिका कापणी - कर्तरी वेहनकं - वेधनकं नरहिणी - नखहरणी डाडी - दण्डिका नउकार - नमस्कार नुकरवाली - नमस्कारमालिका अरिहंत - जिन, वीतराग, परमेष्ठिन् गणधर - गणभृत् आचार्य - आचार्यमिश्र उपाध्याय - पाठकमिश्र माहात्मा - महात्मन्
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________________
डिसेम्बर २०१०
नृगंथ - अनगार
मोक्ष - अपवर्ग, सिद्धि वणारीस - वाचकमिश्र
शास्त्र - श्रुत पड्यास - पण्डितमिश्र
पूज्य - भगवान् क्षलक - वग्नेय (विज्ञेय?) कलाण - माङ्गल्य, भद्र दीक्षा - प्रव्रज्या
॥ इति शब्दसंस्कार ॥१॥ छ ।
ए ६०॥ अहूँ ॥
उक्तः पञ्चधा कर्ता - १. कर्म, २. भावि, ३. कर्मकर्ता, ४. हेतुकर्ता (?) ५. नष्टकर्ता ॥ हुं (हुउं ?) भूतम्, जातम् उपाजिउं - उपार्जित, अर्जित पीधुं - पीतम्
छाडउं - त्यक्त सूधू - आध्रातम्
मेल्हिउ - मुक्त धमिउं - ध्यानं (ध्मातम् ?) लागु - लग्न, सक्त रहिउं - स्थितम्
गानुं - गर्जित, स्तनित जीतुं - जितम्
गोपवउं - गुप्त खयं - खणम् (क्षतम्)
लवु - प्रलपित स्मरिं - स्मृतम्
बोलुं - जल्पित तिरु - तीर्णम्
कहउ - कथित धाउं - ध्यातम्
जपु - जप्त कुरमाणुं - म्लान
चुब्यु - चुम्बित उघु - निद्राण
आचम्यउ - आचान्त ध्रायउ - ध्रात
चापु - आक्रान्त लोचु - लोचित
माडउं - प्रक्रान्त पूनुं - अर्चित, पूजित, महित
सङ्क्रान्त वाछिउं - वाञ्छित, इष्ट, अभीष्ट, ईहित प्रणिमुं - प्रणत मूछिउं - मूच्छित
वांद्यउ - वन्दित
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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
नमस्करु - नमस्कृत ग्यउ - गत आq - आगत मालुं - मलित पढिउ - पठित, अधीत आचरं - आचीर्ण बाध्यउ - बद्ध, यन्त्रित, कीलित फलिउ - फलित फूलुं - पुष्पित खलहिउं - संवलित जीवं – जीवित, प्राणित दीर्छ - दृष्ट डसिउं - दष्ट मोधू - मोषित तूठु - तुष्ट हरखु - हर्षित(हृष्ट) रिष्ट - तुष्ट, प्रीत मूसु - मुष्ट घसिउं - घृष्ट कसुं - कषित घ्रसु - ग्रसित त्रिसु - तृषित निसु - निस्त(निरस्त ?) परसुं - स्पृष्ट अभ्यसउ - अभ्यस्त वसिउं - उषित ऊससउ - उच्छ्वसित हसु - हसित कीधु - कृत, विहित
दीधु - दत्त लीधुं - गृहीत, आ[द] त्त अंगीकर - अङ्गीकृत वीध्यु - विद्ध खाधु - भक्षित दाधु - दग्ध बाधु - बन्धन(बद्ध ?) लाधु - लब्ध मूउं - मृत भरुं - भृत, भरित जरु - जीर्ण झरु - क्षरित वासि - [वा]सित [खाधुं] - भुक्त आदिरु - आदृत धरु - धृत वरु - वृत आवलं - आवृत छावलं, ढाकु - आच्छादितम् सरु - सरित(सृत) प्रसरु - प्रसृत विस्तरउ - विस्तीर्ण उधरु(धरु?) - धृत संहरु - संहृत उदाहरु - उदाहृत उपनउ - उत्पन्न संपनु - सम्पन्न उसंगें - श्रान्त लागु - लग्न
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डिसेम्बर २०१०
३३
न्हाउ - स्नान(त), मज्जन(मज्जित) कापिउं - क्लृप्त पचु - पच्यत(पक्व ?)
तापुं - तप्त रचु - रचित
विगूउ - विगुप्त संचु - सञ्चित
सूतु - सुप्त लीपुं - लिप्त
जागु - जागृत लोपुं - लुप्त
उठिउं - उष्टितं(उत्थित) उहटिउ - निवृत
बइठु - उपविष्ट पाछु वलिउ - पछवीतू वलत(पश्चाद् पइठु - प्रविष्ट वलित ?)
नीठउं - निष्ठित पांगुरु - प्रावृत
रहिउ - स्थित राखु - रक्षित
सामहिउ - सज्जीभूत दीखु - दीष(क्षि?)त
सनहिउं - सन्नद्ध लाखु - विक्षिप्त
संग्रहउं - संगृहीत घालु - क्षिप्त
सासहिउ - संसोढ चालु - चलित
जमुं - [] (?) बलु - ज्वलित
रूधउं - रुद्ध कलु - कलित
पीसुं - पिष्ट नीकलु - नी(नि?)ष्कलित चोरु - चोरित नीसरु - निःसृत
चीतq - चिंतित गलिउं - गलित
रमउ - क्रीडित छलु - छलित
भ्रमुं - भ्रान्त ढलु - लुठित
दमु - दान्त पलु - पलित
वमिउ - वान्त सांभखें - श्रुत, आकर्णित उपसामु - उपसान्त रुलिउ - रुलित
छेदउं - छिन्न वलिउ - वलित
भेदउं - भिन्न कापु - कम्पित
प्रेरु - प्रेरित थापुं - स्थापित
वखाणुं - व्याख्यात व्यापु - व्यापित(व्याप्त)
पाउ - पायित
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३४
अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
रहावं - स्थापित संभारु - स्मृत कराव्यु - कारित छंडाव्यु - त्याजित मेल्हावं – मोचित नमाडिउ - नामित मोकल्यु - प्रहित पढावु - अध्यापित देखाडिउ - दर्शित तूसव्युं - तोषित वासु - वासित आप्यु - अर्पित लेवराव्यु - ग्राहित ऊठाडिउ - उत्थापित बइसारिउं - उपवेशित काढिउ - निष्कासित जमाडिउ - भोजित भमाडिउ - भ्रामित सूआडिउ - शायित न्हवडाव्युं - स्नापित
सक्तउ - शक्नुवन् पामतु - प्रापन् रूधतु - रुन्धन् जोमतु - जंजान (?) भेदतु - भिन्दान जमतु - भुञ्जान मानत - मन्वान लेयतु - गृह्णन् लुणतु - लुन्वन् जाणतु - जानन् चोरतु - चोरयन् चिंततउ - चिन्तयन् परस्मैपदे संवृत् (शतृ?), आत्मनेपदे आनश्
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
होईतु - भवत् देयत - ददत् धरतु - दधत् करतु - विदधत् जागतउ - जागृत (जाग्रत्) मइत् (?) - दे(दी?)व्यत् पोसतु - पोषन् (पुष्णन् ?) वरतु - वृण्वन्
होई - भूत्वा पीइ - पीत्वा रही - स्थित्वा बोली - उक्त्वा जोई - गत्वा देई - दत्त्वा छाडी - हित्वा, मुक्त्वा रमी - रत्वा रूधी - रुन्ध्वा फाडी - भित्त्वा जमी - भुक्त्वा नमी - नत्वा लेई - गृहीत्वा भाजी - भक्त्वा
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डिसेम्बर २०१०
३५
जाणी - ज्ञात्वा चीती - चिन्तयित्वा चोरी - चोरयित्वा करी - कृत्वा, विधाय उठी - उत्थाय ढाकी - पिधाय पइसी - प्रविश्य पामी - प्राप्य आवी - आगत्य सांभली - श्रुत्वा, आकर्ण्य उसरी - उत्सार्य आदरी - आदृत्य माडी - प्रारभ्य मोकली - प्रस्थाप्य तेडी - आकार्य वारी - निवार्य विहरी - विहृत्य पहिरी - परिधाय जोई - विलोक्य आपी - समर्प्य विमासी - विमृश्य वखाणी - व्याख्याय पाछु वली - व्याघुट्य
परसीजतुं - परिसिज्यमान खीजतुं - क्षीयमाण गायतुं - गीयमान खायतुं - खाद्यमान दीसतुं - दृश्यमान संभारीतु - श्रूयमाण बोल(ला)तुं - उच्यमान करावितु - कार्यमान उठाडीतु - उत्थाप्यमान रहावतु - स्थाप्यमान मोकलीतु - प्रेष्यमाण जमाडीतु - भोज्यमान आणीतु - आनीयमान उपाडीतु - उत्पाट्यमान
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करिवा - कर्ता (कर्तुम्) लेवा - ग्रहीतुम् देवा - दातुम् पीवा - पातुम् संभलिवा - श्रोतुम् जोवा - द्रष्टुम् जिमवा - भोक्तुम् बोलवा - वक्तुम् बइसवा - उपवेष्टुम् रहिवा - स्थातुम् जाइवा - गन्तुम् आणिवा - आनेतुम् कराविवा - कारयितुम्
कीजतो - कीर्य(क्रिय)माण दीयतुं - दीयमान पीजतुं - पीयमान लीजतुं - गृह्यमान
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लेवराइवा दवराविवा
लेणहार - जिग्रहिषु चि
करणहार
वरणहार
वुवूर्षु
मरणहार – मुमूर्षु सम(स्मरण ?)हार - सुस्मूर्षु
चरणहार
जिगी (गमिषु उत्तिष्ठा
ऊ[ठ]हर रहणहार - तिष्ठासु
बइसणहार
कर
-
लइ
विविक्षु प्रविविक्षु
[प] इसहार
जाणणहार - जगमुष(जिगमयिषु ?) अपायसु(अर्पिपिषु ?) द्रष्टव्य (दिदृक्षु)
आपणहार
देखणहर
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सांभलिउणहार - शुश्रूषु
विवक्षु
बोलणहर पडणहार पिपतिषु भणहार - बिभणिषु वखाणहार व्याचिख्यासु
चिचलिषु
चालणहार दइणहार दित्सु
जाणहार
जिज्ञासु
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ग्राहयितुम्
दापयितुम्
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अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
दिनं - देहि
आणि
आनय
जाणि - जानीहि
वखाणि
व्याख्याहि
बोलि बिहु (ब्रवीहि)
ऊठि उत्तिष्ठ
रहि - तिष्ठ
मोकलि
जमिं
जोइ
कुरा (रु)
गृहाणि(ण)
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1
_भु[न]क्तु
पश्य
॥ इति क्रियासङ्क्षेपः ॥
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लाजइ, रहइ, हुइ, जागइ, वाधइ, खूटइ, जीवइ, मरइ, सूवि, रमइ, भावई, शोभई एते धातवो ऽकर्मकाः ॥
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प्रहि[णो]तु
दोहि
दोग्धि याचति(ते)
मागइ
रूधइ
रुणद्धि
पूछइ पृच्छति भीख[इ] भिक्ष सीख[व]इ पमाइ नयति छू(चू) टिवि
चिनोति
इत्यादयो द्विकर्मकाः कीरतातश्च (कीर्तिताश्च) ।
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अनुशास्ति
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________________ डिसेम्बर 2010 37 प्र-परा-ऽप-समन्वय-निर्दुरभि-व्यधि-सूदति-नि-प्रति-पर्यपयः / उप-आङिति विंशतिरेष सखे ! उपसर्गगणः कथितः कविना // लज्जा-सत्ता-स्थिति-जागरणं वृद्धि-क्षय-भय-जीवित-मरणम् / शयन-क्रीडा-रुचि-दीप्त्यर्था धातव एते कर्मविहीनाः / / तथा कर्ता षड्विधः - स्वतन्त्रकर्ता / 1 / , हेतुकर्ता / 2 / , कर्मकर्ता / 3 / , उक्तकर्ता / 4 / , अनुक्तकर्ता / 5 / , उपयुज्यमानकर्ता / 6 / / तथा[हि] - गुरुः व्याख्यानं करोति, साधुः धर्मं करोति, लूयते केदारः स्वयमेव, उक्तानुक्तौ प्रसिद्धौ, नगरं दृश्यते // त्रिविधं कर्म - प्राप्यं - निर्वयं - [विकार्यं] च / ग्रामं याति, कटं करोति, काष्ठं दहति / करणं द्विधा - दात्रेण लुनाति - बाह्यकरणम् / ___ मनसा मेरुं याति - अभ्यन्तरकरणम् / सम्प्रदानं त्रिधा - प्रेरकं, अप्रेरकं, अनिराकृतं च / अपादानं द्विधा - चलं अचलं च / धावतोऽश्वात् पतति / वृक्षात् पर्णं पतितम् / अधिकरणं चतुर्धा - व्यापकम्, उपश्लेषकम्, सामीप्यकं, वै[ष]यिकम् / शरीरे ज्वरः, कटे आस्ते, नद्यां घोष, शस्तो वधान (शत्रौ अवधानम् ?) इति उगतीयं शब्दसंस्कार समाप्तः / ऋषिरूपालिखितम् / साधवी सवीरांपठनार्थम् // C/o. श्रीविजयनेमिसूरि स्वाध्यायमन्दिर 12, भगतबाग, शारदामन्दिर पासे, पालडी, अमदावाद-७