Book Title: Sarvsiddhantpraveshak Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur View full book textPage 8
________________ I सर्वसिद्धान्त प्रवेशक ग्रन्थ भी ऐसा ही है । इसमें भी माध्यस्थ भाव से सभी भारतीय दर्शनों की मान्यताओं को प्रस्तुत किया गया है । मुख्य-मुख्य सभी दर्शनों के सिद्धान्तों का निरूपण करने वाला 'सर्वसिद्धान्त प्रवेशक' नामक यह ग्रन्थ भी अद्यावधि स्वतन्त्र रूप से अप्रकाशित था। इसमें नैयायिक, वैशेषिक, सांख्य, जैन, बौद्ध, मीमांसक तथा चार्वाक - इस प्रकार सात दर्शनों का निरूपण किया गया है। हरिभद्र का षडदर्शनसमुच्चय नामक ग्रन्थ पद्यात्मक है, जबकि यह ग्रन्थ गद्यात्मक है। सर्वसिद्धान्त प्रवेशक की रचनाशैली अतिविस्तृत न होते हुए भी अतिसंक्षिप्त भी नहीं है। भाषा और प्रतिपादन शैली अत्यन्त मनोहर होने से विभिन्न दर्शनों के ज्ञान की प्राप्ति का यह उत्तम ग्रन्थ । इसी कारण इस ग्रन्थ के सम्पादन का उपक्रम किया गया है। इस ग्रन्थ को खोज निकालने का यश आगम प्रभाकर पू. मुनिराज श्री पुण्यविजय जी को प्राप्त होता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन प्राचीन साहित्य की खोज में ही अर्पण किया था। जैन समाज उनके पुण्यकार्य से अच्छी तरह परिचित है। जैसलमेर की 'ए' तथा 'बी' प्रति के आधार पर पाठांतर खोजकर सर्वसिद्धान्तप्रवेशक ग्रन्थ की आपके स्वयं के द्वारा तैयार की गई प्रतिलिपि पूज्य पुण्यविजय जी महाराज ने मुझे स्वयं भेजी थी। जिसके आधार पर यह सम्पादन का कार्य हुआ है। पूज्यपाद गुरूदेव श्री 1008 भुवनविजय जी महाराज की यह इच्छा एवं प्रेरणा थी कि प्रस्तुत ग्रन्थ इस विषय के अध्येताओं को अतिउपयोगी हो सकता है, अतः इसे स्वतन्त्र रूप से प्रकाशित करना चाहिये । पूज्य गुरूदेव की इच्छा के अनुसार यह उपयोगी ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है, यह मेरे लिए आनन्द का विषय है। यह ग्रन्थ अध्येताओं को भिन्न-भिन्न दर्शनों के मुख्य सिद्धान्तों का ज्ञान देने के साथ-साथ पूर्ण समभाव की तरफ लेजाने वाली अनेकान्तदृष्टि को प्राप्त कराने वाला हो, यही मेरी शुभेच्छा है । - मुनि जम्बूविजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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