Book Title: Sarvsiddhantpraveshak
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 13
________________ ( xii ) यह मुख्यतया जैनमत की स्थापना और अन्य मतों के खण्डन के लिए लिखा गया है। एक मात्र इसकी विशेषता यह है कि इसमें महाभारत, स्मृति, पुराण आदि के आधार पर जैनमत का समर्थन किया गया है। पं. दलसुखभाई मालवणिया ने षड्दर्शनसमुच्चय की प्रस्तावना में इस बात का भी उल्लेख किया है कि सोमतिलकसूरिकृत षड्दर्शनसमुच्चय की वृत्ति के अन्त में अज्ञातकर्तृ एक कृति मुद्रित है। इसमें भी जैन, नैयायिक, बौद्ध वैशेषिक, जैमिनीय, सांख्य और चार्वाक - ऐसे सात दर्शनों का संक्षेप में परिचय दिया गया है किन्तु अन्त में अन्य दर्शनों को दुर्नय की कोटि में रखकर जैनदर्शन को उच्च श्रेणी में रखा गया है। इस प्रकार इसका लेखक भी अपने को साम्प्रदायिक अभिनिवेश से दूर नहीं रख सका । इस प्रकार हम देखते हैं कि दर्शन- संग्राहक ग्रन्थों की रचना में भारतीय इतिहास में हरिभद्र ही एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने निष्पक्ष भाव से और पूरी प्रामाणिकता के साथ अपने ग्रन्थ में अन्य दर्शनों का विवरण दिया है। इस क्षेत्र में वे अभी तक अद्वितीय हैं। १. षड्दर्शनसमुच्चय - सं. डॉ. महेन्द्रकुमार, प्रस्तावना पृ. २०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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